Book Title: Simandharswami Lekh
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ 112 मोरा वाहलानि कोई मेलवउ संदेसडु कहुं कोइ कुंण जांणस्यइ रानइ रडिउ मन दुख लहिस्यइ कोई रे. बाल्हा. ५ मुझ दिवस वरसासु समु तुझ विना रयणि छ मास तोरइ वेधडइ सहु वीसरु सुहणा तणी सी आस गुण तोरडइ मन वेधीउं नवि वलि वाल्युं एह भूख-तरस ऊडी गयां तोरइ वेधडइ दाझि मोरी देह रे. वा. ६ दूतीपणुं तोरा गुंण करइ एक घडी न अलगी होई जस काजि मन झूरी मरइ परदेसि वाहलां सोइ मन मांहि गुण छांना वसइ घण अंब मांहि जिम मोरं चित्त कोरइ खिणि खिणि दूबलु थाई मोरुं तन रे. वाहला तुं. वा. ७ (राग केदारु - गुडी, श्रेणिक [यावाडी चडिउ - ए देशी) हं घणं जाणं भेटीइ अति सबल हैयडइ कोड बिण पांखडी हुँ सिउं करूं ए मोटी रे देह मुझ खोडि वाहालाजी हिअडइ धरजो नेह तु मू मिलवा रे अलजउ देह रखे पडती रे नेहडइ रेह. वा. ८ द्रुपद (आंकणी) एकइ रे गामि वसंतडां अंतराय वसि न मिलाई परदेसि वाहला जे वसि तस मिलीइ रे केणइ उपाय. वा. ९ किम वसइ तूं परदेसडइ ओ भंजि मुझ मनभ्रांति नवि नीसरइ मन बाहिरिइ मुझ सुहणइ रे तोरडी खंति. वा. १० सवि सुगुण सुर निज सिरि धरइ हंसला करई विलास तुंह नेह बांधी कमलिनी पूरइं पूरई रे भमरनी आस. वा. ११ दोइ आंखडी अलजउ धरइ मोरइ चित्त तो ध्यान तुझ नाम जीभ न वीसरइ तोरा गुणडा रे सुख दिये कांनि. वा. १२ १. वेगला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8