Book Title: Simandharswami Lekh Author(s): Pradyumnasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ श्रीसीमंधरस्वामी लेख/पत्र कर्ता : श्रीजयवंतसूरि (१) ( राग : सामेरी) स्वस्ति श्री पुंडरगिणी मोरु सगुण सीमंधरस्वामि मुहि बोलतां अमृत झरई मनोहर मोहन नांम गुणकमल तोरइ वेधीउ मनभ्रमर मुझ रस पूरि तुझ भेटवा अलजउ घणउ किम करुं थांनक दूरि रे. वाहला तुं परदेसि जई रह्यउ रे दूरि नयण मेलावउ रे वाहला लेख लेखवयो प्रीतडी रे संदेसई व्यवहार वाहला. अणदीठइ अलजउ घणउ मन तपइ मिलवा काजि तुझ देखवा मुख चंदलउ दोइ नयण करइ रुहाडि जव सुपन मांहि तुं मिलि तव हर्ष हीइ न माई है है रे दैव अटारडु वइरणी रयणी विहाइ रे. रे सूडिला तोरी पांखडी मुझ आपि करि उपगार नयण संतोष जइ करुं न खमाइ वेध विकार. जे जाई घडीघडी ते विना ते वरस सरीखी थाई विरहीयां हुइ उतावला, खिण एक विलंब न खमाई रे . डुंगर दरीआ विचि वहइ अति विषम अवघट वाट मनि मिलण मोह धरुं घणुं तु विना अंग उच्चाट Jain Education International रे दैव ति एक देसडि सिंया न कीआ दोई अवतार ? दिन प्रति नयन मेलावडइ संतोष हुंत अपार परदेसि वाहलां वेगलां जिउ तपइ मिलवा काजि जउ पंख सरजइ दैव तुं, तु ऊडी मिलुं हुं आज रे. आंकणी. १ For Private & Personal Use Only वाहला तुं. २ वाहला. ३ वाहलां. ४ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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