Book Title: Simandharswami Lekh Author(s): Pradyumnasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ 109 जयवंतसूरिकृत श्रीसीमंधरस्वामी लेख/पत्र __ संपा. प्रद्युम्नसूरि कविपरिचय : श्रीजयवंतसूरिनुं नाम मध्यकालीन कविओमा आगली हरोळमां छे. तेमणे कदमां मोटी रचनाओ (शृंगारमंजरी, ऋषिदत्तारास व.) आपी छे अने ते मातबर-बळकट छे तो नानी नानी रचनाओ पण तेमनी एटली ज नोंधपात्र छे अने तेमां पण तेमनी आगवी सर्जक मुद्रानी भात सांपडे छे. तेमणे रचेलां गीतोनी संख्या एंशी जेटली थवा जाय छे. भर्यो भर्यो सर्जक क्यारे पण एक ज साहित्यप्रकारथी संतुष्ट थतो नथी. ते विधविध प्रकारो उपर कलम अजमावतो रहे छे अने तेमां पोताना मनोभावने वाचा आपतो रहे छे. तेमनो सत्ता समय सोळमी सदीनो उत्तरार्ध अने सत्तरमी सदीनो पूर्वार्ध गणी शकाय, बृहत् तपागच्छना रत्नाकरसूरि महाराजना नामथी जे रत्नाकर शाखा शरु थई ते शाखामां, उपाध्याय विनयमंडनना ते शिष्य हता. तेमनो विद्याव्यवसाय ए जीवननो व्यवसाय हतो एम तेओए रचेल साहित्य फाल जोतां कही शकाय. तेमां मुख्य बे रास कृतिओ छे. शृंगारमंजरी (वि.सं. १६१४). ऋषिदत्ता-रास (वि.सं. १६४३) आ रास उपरांत फागबारमास-संवाद अने आ पत्र जेवी नानी रचनानी संख्या ८० जेटली धवा जाय छे. अने आ संख्यामां तो छ ज पण गुणमां-सत्त्वमां तो एक नीवडेला कवि तरीके प्रतिष्ठित करी शकाय तेवी रचनाओ छे.. आ रीते तेमनो सत्तासमय विक्रमनी सोळमी-सत्तरमी सदी कही शकाय, तेमना विषे विस्तारथी जाणवानी रुचिवाळाए जयंत कोठारीनो "पंडित, रसज्ञ अने सर्जक कवि जयवंतसूरि" ए लेख जोवो जोइओ. कृतिपरिचय : श्रीसीमंधरस्वामी लेख-पांच ढाळमां रचायेली ४०- कडीनी रचना छे. पांच प्रकारनी ढाळमां रागनां पण निर्देश कर्यो छे. आ रचनानी एक अनेरी विशेषता ए छे के आ रचना 'लिखियउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8