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जयवंतसूरिकृत श्रीसीमंधरस्वामी लेख/पत्र
__ संपा. प्रद्युम्नसूरि कविपरिचय :
श्रीजयवंतसूरिनुं नाम मध्यकालीन कविओमा आगली हरोळमां छे. तेमणे कदमां मोटी रचनाओ (शृंगारमंजरी, ऋषिदत्तारास व.) आपी छे अने ते मातबर-बळकट छे तो नानी नानी रचनाओ पण तेमनी एटली ज नोंधपात्र छे अने तेमां पण तेमनी आगवी सर्जक मुद्रानी भात सांपडे छे. तेमणे रचेलां गीतोनी संख्या एंशी जेटली थवा जाय छे. भर्यो भर्यो सर्जक क्यारे पण एक ज साहित्यप्रकारथी संतुष्ट थतो नथी. ते विधविध प्रकारो उपर कलम अजमावतो रहे छे अने तेमां पोताना मनोभावने वाचा आपतो रहे छे. तेमनो सत्ता समय सोळमी सदीनो उत्तरार्ध अने सत्तरमी सदीनो पूर्वार्ध गणी शकाय,
बृहत् तपागच्छना रत्नाकरसूरि महाराजना नामथी जे रत्नाकर शाखा शरु थई ते शाखामां, उपाध्याय विनयमंडनना ते शिष्य हता.
तेमनो विद्याव्यवसाय ए जीवननो व्यवसाय हतो एम तेओए रचेल साहित्य फाल जोतां कही शकाय. तेमां मुख्य बे रास कृतिओ छे. शृंगारमंजरी (वि.सं. १६१४). ऋषिदत्ता-रास (वि.सं. १६४३) आ रास उपरांत फागबारमास-संवाद अने आ पत्र जेवी नानी रचनानी संख्या ८० जेटली धवा जाय छे. अने आ संख्यामां तो छ ज पण गुणमां-सत्त्वमां तो एक नीवडेला कवि तरीके प्रतिष्ठित करी शकाय तेवी रचनाओ छे..
आ रीते तेमनो सत्तासमय विक्रमनी सोळमी-सत्तरमी सदी कही शकाय, तेमना विषे विस्तारथी जाणवानी रुचिवाळाए जयंत कोठारीनो "पंडित, रसज्ञ अने सर्जक कवि जयवंतसूरि" ए लेख जोवो जोइओ. कृतिपरिचय :
श्रीसीमंधरस्वामी लेख-पांच ढाळमां रचायेली ४०- कडीनी रचना छे. पांच प्रकारनी ढाळमां रागनां पण निर्देश कर्यो छे.
आ रचनानी एक अनेरी विशेषता ए छे के आ रचना 'लिखियउ
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माझमराति' शरत् पूर्णिमानी रात्रे आ रचना थई छे. कविहृदय-भक्तना हृदयने खीलववा माटे शरद् ऋतु अने तेमां पूनमनी रात्रि, खीलेला पूर्णचंद्रनी वरसती चांदनी पर्याप्त छे. दरियामा जेम तरंगमाला उभरे तेम कविहृदयमां काव्यनी सरवाणी वह्या विना न रहे.
एमां प्रभु सीमंधरस्वामीने विनतिनो विषय तेथी तेमा भक्तिनी छटा उमेराई छे. प्रभुने प्रियतम बनाव्या पछी तेनी साथेनी गोठडीमां विरह-संयोगमिलन अने ते विषेनी ऊर्मिओ केवी उछळती रहे तेना दर्शन अहीं थाय छे. आ ढाळो गाती वखते जे आनंदनो अनुभव थाय छे ते तो अनुभवगम्य घटना
कल्पनावैविध्य, उपमावैचित्र्य घणां स्थाने जोवा मळे छे. "सवि अक्षर हीरे जड्या, लेख अमूलिक एह" एम पोते ज कहे छे. एक मनोरम कृति छे. प्रतिपरिचय :
आ रचनानी प्रतो भिन्न भंडारोमां मळे छे. अहीं तो ला.द.भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरनी क्र. ६५२१. ए प्रतने मुख्य राखी छे अने पछी ते ज भंडारनी क्र. २४८१४ अने २७२३६ एम बे प्रतो साथे पाठभेदनी दृष्टिए मेळवी छे. पण ते बन्ने प्रतोमा पाठभेद तो खास नथी मळ्या पण ते अशुद्ध जणाई छे. उपयोगमा लीधेली प्रतनां त्रण पत्र छे. पत्रनी बन्ने बाजुए तेर लीटी छे. छेल्ला पत्रनी बीजो बाजुए पांच लीटी छे. प्रतना अक्षर मरोडदार अने मोटा छे. प्रत शुद्ध लखाई छे. ख ने माटे ष वपरायो छे. लहीयानुं नाम नथी. लेखन संवत पण नथी. प्रत सत्तरमी सदीनी होवानुं अनुमान थई शके छे. अंतमां पं. हेमराजपठनार्थे एम लखेलुं छे. प्रतो घणे भंडारे मळे छे माटे तेनो प्रसार सारो एवो थयो हशे एम लागे छे. अंते कृतिना शब्दोनी अर्थ साथे सूची आपी छे. आ रचनानी अने शब्दकोषनी (फेर कोपी) स्वच्छ नकलमां श्रीकांतिभाई बी. शाहनी सहाय मळी छे तेनु सानंद स्मरण करुं छु.
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श्रीसीमंधरस्वामी लेख/पत्र
कर्ता : श्रीजयवंतसूरि
(१) ( राग : सामेरी) स्वस्ति श्री पुंडरगिणी मोरु सगुण सीमंधरस्वामि मुहि बोलतां अमृत झरई मनोहर मोहन नांम गुणकमल तोरइ वेधीउ मनभ्रमर मुझ रस पूरि तुझ भेटवा अलजउ घणउ किम करुं थांनक दूरि रे. वाहला तुं परदेसि जई रह्यउ रे दूरि नयण मेलावउ रे वाहला लेख लेखवयो प्रीतडी रे संदेसई व्यवहार वाहला.
अणदीठइ अलजउ घणउ मन तपइ मिलवा काजि तुझ देखवा मुख चंदलउ दोइ नयण करइ रुहाडि जव सुपन मांहि तुं मिलि तव हर्ष हीइ न माई है है रे दैव अटारडु वइरणी रयणी विहाइ रे.
रे सूडिला तोरी पांखडी मुझ आपि करि उपगार नयण संतोष जइ करुं न खमाइ वेध विकार. जे जाई घडीघडी ते विना ते वरस सरीखी थाई विरहीयां हुइ उतावला, खिण एक विलंब न खमाई रे .
डुंगर दरीआ विचि वहइ अति विषम अवघट वाट मनि मिलण मोह धरुं घणुं तु विना अंग उच्चाट
रे दैव ति एक देसडि सिंया न कीआ दोई अवतार ? दिन प्रति नयन मेलावडइ संतोष हुंत अपार परदेसि वाहलां वेगलां जिउ तपइ मिलवा काजि जउ पंख सरजइ दैव तुं, तु ऊडी मिलुं हुं आज रे.
आंकणी. १
वाहला तुं. २
वाहला. ३
वाहलां. ४
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112 मोरा वाहलानि कोई मेलवउ संदेसडु कहुं कोइ कुंण जांणस्यइ रानइ रडिउ मन दुख लहिस्यइ कोई रे. बाल्हा. ५ मुझ दिवस वरसासु समु तुझ विना रयणि छ मास तोरइ वेधडइ सहु वीसरु सुहणा तणी सी आस गुण तोरडइ मन वेधीउं नवि वलि वाल्युं एह भूख-तरस ऊडी गयां तोरइ वेधडइ दाझि मोरी देह रे. वा. ६ दूतीपणुं तोरा गुंण करइ एक घडी न अलगी होई जस काजि मन झूरी मरइ परदेसि वाहलां सोइ मन मांहि गुण छांना वसइ घण अंब मांहि जिम मोरं चित्त कोरइ खिणि खिणि दूबलु थाई मोरुं तन रे. वाहला तुं. वा. ७
(राग केदारु - गुडी, श्रेणिक [यावाडी चडिउ - ए देशी) हं घणं जाणं भेटीइ अति सबल हैयडइ कोड बिण पांखडी हुँ सिउं करूं ए मोटी रे देह मुझ खोडि वाहालाजी हिअडइ धरजो नेह तु मू मिलवा रे अलजउ देह रखे पडती रे नेहडइ रेह. वा. ८ द्रुपद (आंकणी) एकइ रे गामि वसंतडां अंतराय वसि न मिलाई परदेसि वाहला जे वसि तस मिलीइ रे केणइ उपाय. वा. ९ किम वसइ तूं परदेसडइ ओ भंजि मुझ मनभ्रांति नवि नीसरइ मन बाहिरिइ मुझ सुहणइ रे तोरडी खंति. वा. १० सवि सुगुण सुर निज सिरि धरइ हंसला करई विलास तुंह नेह बांधी कमलिनी पूरइं पूरई रे भमरनी आस. वा. ११ दोइ आंखडी अलजउ धरइ मोरइ चित्त तो ध्यान
तुझ नाम जीभ न वीसरइ तोरा गुणडा रे सुख दिये कांनि. वा. १२ १. वेगला
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नवि वीसरइ गुण तोरडा जउ लाख जोअण दूरि पंजरर्दू सूनूं भमि तुझ पासइ रे मन रस पूरि. वा. १३ तुझ काजि वाहला आवडुं झूरी मरु निसिदीह, कां कठिन तोरं हिअडलूं नवि आणइ रे मुझ सिउं नेह. वा. १४ मोरइ चीति तुझ विण को नवी तुझ चित्ति न लहुँ कोइ न खमाइ मई तुझ वेधडु एक वार रे अम्ह साहमु जोई. वा. १५
(३) (राग मल्हार : रुखमणी अंगज जनमीयउ - ए देसी) गुंथी तुझ गुणफूलडे नाम मंत्र मुझ अह रे । विरह तणां विष टालिवा हूं जपूं निसिदीह रे. १६ सुंगुण सलूणा सीमंधरा तोरी जाउं बलिहारि रे साहयुं जोउ नेह-नयणले करुं वेधीडा सार रे. द्रुपद. १७ मनि मिलवा अलजउ घणउ रचुं कोडि हूं संच रे प्रापति विण तुम भेटडी लहीइ केणइ प्रपंचि रे. सु. १८ दैवि इम कां सरजीयां नही लेख संदेस रे नयणां पणि मिली नवि सकइ वाहलां छइं परदेसि रे. सुं. १९ तेहवउ को नही आपणउ जोडइ मुझ तुझ प्रीति रे लेख-संदेसु मोकलो कहुं वात जे चित्त २ रे. सुं. २० चंदु वली वली वीनव्युं मुझ नवि करइ काज रे विरह-विछोहिआ वेदना पामी नवि लहइ आज रे. सुं. २१ विरह-विछोहीआं माणसां थोडा मेलणहार रे आप समी लहइ वेदना उसि जाउं बलिहारि रे. सु. २२ दोषी दुरजन जगि घणां पाडइ बाहिरि माम रे । मनस्युं धरजो प्रीतडी नहि लेखनुं काम रे. सगुण स. २३
२. पाठवू
३. मन तणी वात
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(४)
( राग : आसासिंधू )
वली वली अ दसि जोइइ रे मनोहर दीसइ वाट मन अलजउ धरइ आविवा रे तुम नेहडा माटि २४
वाहलाजी करिनई अह्मारी सार क्षणि क्षणि समरुं गुण ज तोरा आसाढी मेह जिम समरइ मोरा पूनिम दिन जिम चंद चकोरा फूल तणा गुण भ्रमर भलेरा. वा. २५ द्रुपद
आंणी वाटई जाणु आवसइ रे तिणि वेधिइ रहुं बारि आशा - बांधिउं मन रहइ रे न लहइ असूर सवार. वा. २६ तुझ उपरि मुझ नेहडइ रे साखी चंद सुजांण घणु कहि स्यु कारिमूं रे तुझ हाथि मुझ प्राण. वा. २७ पसरी तुम मन मांडविइ रे मनोहर अझ गुणवेलि हिंजलि नितु सीचजो रे जिम हुइ रंगरेलि. वा. २८ किहां सूरज किहां कमलिनी रे किहां मोर किहां मेह, दूरि गया किम वीसरइ रे उत्तम तणा सनेह. वा. २९
मानस समरइ हंसला रे चातिक समरइ मेह
कमल भमर विंझ हाथीआ रे, तिम समरुं तुझ नेह. वा. ३०
(५)
( राग : धन्यासी)
चतुर चमकइ चीतडइ तु चालतां भुंइ सोहइ रे
अमी झरइ मुखि बोलंतां तु तोरइ नयनभ्रमिं सहू मोहइ रे. ३१
एहवा रे गुण तुम्ह तणा कांई कहतां नाव पार रे
मन मांहिं जाणुं घणुं मोहणवेलि अवतार रे. ३२ द्रुपद.
जव जगदीसर मेलस्यइ तव मलसु सुरंगइ रे
कहसु मनना दुःखडां तु अलजउ छइ अति अंगइ रे. एहवा. ३३
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सायर मिसि मेरु लेखणीउ कागल अंबर सार रे
तुहि मननी वातडी ते रे लखितां नाव पार रे. एहवा. ३४ अखर बावन गुण घणा केता लिखीइ लेख रे
थोडइ घणुं करी जाणजो सुख होस्यइ तुम्ह देखि रे. ए. ३५
मनि जे उपजइ वातडी ते लेखमां न लखाई रे
पापी दोषी दुरजन घणा तु मिल्या पाखइ न कहिवाइ रे. ए. ३६
मनमाहि वाची राखजो लाख टंकानुं लेखइ रे
विरी- हाथि रखे चडइ रखे कोई दुरजन देखइ रे. ३७
सवि अक्षर हीरे जड्या लेख अमूलिक एह रे वेधक मुखि तंबोलडुं मन - रीझवणुं एह रे. ३८ साधु सिरोमणि जाणी श्रीविनयमंडण उवज्झाय तास सीस गुण - आगला बहुला पंडितराय रे. ३९
रे
आसो सुदि पुंनिम दिनइ तु शुक्रवार एकांतिइ रे कागल जयवंत पंडितइ लिखीयउ माझिमराति रे. ए. ४०
- इति श्रीसीमंधरस्वामि लेख समाप्त
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पं. श्रीहेमराज पठनार्थं ॥
शब्दकोश
अखर ३५.१ अक्षर अटारडु २.४ वांकु, अटकचाळु
अमूलिक ३८.१ अमूल्य अलजउ १.४, २.१, ८.४, १२.१,
१८.१, २४.२, ३३.२, आतुरता, उत्कंठा
अवघट ५.१ विकट, मुश्केल असूरसवार २६.२ वहेलुं मोडुं
अंबर ३४.१ आकाश
आगला ३९.२ अग्रणी, श्रेष्ठ आशाबांधिउं २६.२ आशाथी बंधायेलुं
उचाट ५.२ अजंपो
उसि २२.२ एनी पर
काजि ७.२ माटे
कारिमूं २७.२ अद्भुत, असाधारण, भयंकर
कांनि १२.२ कानने
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________________ 116 खंति 10.2 होश, उमंग मोरु 1.1, 7.3, 7.4 मारो, मारु खिण 3.4 क्षण मोहणवेलि 32.2 मोहनवेल, चित्रावेलि खोडि 8.2 क्षति रडिउ 5.4 रुदन चंदु 21.1 चंद्रमा रयणि 6.1 रात्रि छांना 7.3 गुप्त रंगरेलि 28.2 आनंद जाउं बलिहारी 17.1, 22.2, वारी रानइ 5.4 जंगलमां जाउं रीझवणुं 38.2 प्रसन्नता, राजीपो टंका 37.1 नाj रुहाडि 2.2 इच्छा, अभिलाषा तंबोलर्छ 38.2 खावानुं नागरवेलर्नु पान रेह 8.4 रेखा-रेख तोरडइ 6.3 तारा विरी 37.2 वेरी, शत्रु तोरी 17.1 तारी विहाइ 2.4 शोभे दाझि 6.4 दाझे, बळे विझ 30.2 विध्याचळ पर्वत दूबलु 7.4 दुर्बळ वेधक 38.2 प्रियजन देखि 35.2 जोइने वेधडइ 6.2, 6.4 विरहव्याकुळतामां, देसडि 4.1 देशमा आसक्तिमां नीसरइ 1.2 नोकळे वेधडु/ वेधीडा 15.2, 17.2 वियोग, नेहडइ 8.4 हेतमां नेहडा 24.2 स्नेह, प्रीति वेधिइ 26.1 आसक्तिथी पाखइ 36.2 विना, सिवाय वेधीउ 6.3 वींध्यु भमि 13.2 भमे सलूणा 17.1 सुंदर भंजि 10.1 भांगो, दूर करो, निवारो संच 18.1 युक्ति, उपाय भुंइ 31.1 भूमि, भोंय सिंया 4.1 शा माटे भेटडी 18.2 मळवू ते सुगुण 11.1 गुणवान . भ्रमि 31.2 भ्रमर (आंखनी) सुरंगइ 33.1 आनंदभेर माझिभराति 40.2 मधराते सुहणा 6.2, 10.2 स्वान मांम 23.1 मोटाइ, मोभो सूडिला 3.1 पोपट मिसि 34.1 शाही हुंत 4.2 होत, थात मुझ-सिउं 14.2 मारी साथे विरह