Book Title: Siddhasen Divakarjina Kevalgyan Darshan Angena Mantavya Vishe Vicharna
Author(s): Trailokyamandanvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 21
________________ १२६ अनुसन्धान-५९ थाय, तेम पोताना आवरणनो क्षय थये छते केवलदर्शन पण उत्पन्न थाय ज. साथे वर्तवा छतांय बन्ने वच्चे सर्वथा अभेद नथी, कारण के बन्नेना आवरण जुदां हतां. पण कालनी अपेक्षाओ बन्ने वच्चे अभेद छे. वि. - आ गाथाथी क्रमवादनुं खण्डन प्रारम्भाय छे. टीकाकार भगवन्ते छल्ले जे चोखवट करी छे ते श्रीसिद्धसेनाचार्यने अभेदवादी गणनाराओओ खास लक्ष्यमां लेवाजेवी छे. भण्णइ खीणावरणे, जह मइणाणं जिणे ण संभवइ । तह खीणावरणिज्जे, विसेसओ दंसणं णत्थि ॥२.६।। टी. - (पूर्वे जणाव्युं तेम क्रमिकता मत्यादि ज्ञानो साथे नियत छे. माटे) जेम आवरणनो क्षय थाय अटले मतिज्ञान केवलज्ञानीने नथी होतुं, तेम आवरणनी क्षीणता थये छते केवलज्ञानथी पृथग केवलदर्शन पण न होय. वि. 'भण्णइ'थी कोइक स्पष्टता थई रही छे अवो सङ्केत मळे छे. ते ओ छे के पूर्वेनी गाथामां जणाव्या मुजब स्वावरणनो क्षय थये छते केवलदर्शननी उत्पत्ति थाय ते वात तो क्रमवादीने पण मान्य ज छे. पण ते केवलज्ञानथी केवलदर्शनना उपयोगने भिन्नकालीन गणे छे. ते वात बराबर नथी ते जणाववा भेदाभेदवादी उपरनी गाथा रजू करे छे. सुत्तम्मि चेव 'साइ अपज्जवसिय'ति केवलं वुत्तं । सुत्तासायणभीरूहि तं च दट्ठव्वयं होइ ॥२.७॥ संतम्मि केवले दंसणम्मि णाणस्स संभवो नत्थि । केवलणाणम्मि य दंसणस्स तम्हा सणिहणाइं ॥२.८।। टी. - आगममां ज केवलने (अर्थात् केवलज्ञान अने केवलदर्शनने) सादि-अनन्त कहेवामां आव्युं छे. माटे सूत्रनी आशातनाथी डरनारा (क्रमवादी) आचार्योओ ते पण ध्यान पर लेवा जेतुं छे. (कारण के क्रमवादमां तो) केवलदर्शन वखते केवलज्ञाननो सम्भव नथी अने केवलज्ञान वखते केवलदर्शननो सम्भव नथी. माटे बन्ने सान्त बने छे. (अर्थात् आ रीते क्रमवादमां पण केवलज्ञान-दर्शननी अनन्तता प्रतिपादित करनारा सूत्र साथे विरोध ज आवे छे.)

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