Book Title: Siddh Hemhandranushasanam Part 01
Author(s): Hemchandracharya, Udaysuri, Vajrasenvijay, Ratnasenvijay
Publisher: Bherulal Kanaiyalal Religious Trust
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. आचार्यश्री के मुख से इस काव्योक्ति को सुनकर सिद्धराज अत्यन्त ही प्रभावित हुआ और उसने आचार्यश्री को प्रतिदिन राजसभा में धर्मोपदेश देने के लिए आमन्त्रण दिया । __ आचार्यश्रीने सिद्धराज के अमन्त्रण को सहर्ष स्वीकार किया और प्रतिदिन राजसभा में जाने लगे और अपनी बुद्धि प्रतिभा से इस प्रकार धर्म के रहस्यों को समझाने लगे कि जिसे सुनकर सिद्वराज अत्यन्त ही प्रभावित हो गया। क्रमशः सिद्धराज की राजसभा में आचार्यश्री की प्रतिष्ठा बढने लगी।
व्याकरण की रचना-क्यों और कब ? विक्रम संवत् ११९२ का समय था । अवसर देखकर सिद्धरा ने मालवा देश के अधिपति यशोवर्मा राजा के ऊपर आक्रमण कीया । दोनों राजाओ में परस्पर युद्ध हुआ और उस युद्ध में सिद्धराज ने विजय प्राप्त की।
मालवा देश को जीतकर जब सिद्धराज ने पाटण के सिद्धद्वार में प्रवेश किया तब पाटण के नगर वासियों ने सिद्धराज का भव्य स्वागत किया । अनेक कवियों ने राजसभा में जाकर सिद्धराज की स्तुति की। हेमचन्द्राचार्य जी ने भी सिद्धराज को आशीर्वाद देते हुए कहा
'भूमि कामगवि ! स्वगोमयरसैरासिञ्च रत्नाकरा ।
मुक्तास्वस्तिकमातनुध्वमुडुप । त्वं पूर्णकुम्भीभव । ... . धृत्वा कल्पतरोदलानि सरलैदिगवारणास्तोरणा ....... न्याधत्त स्वकरौवजित्य जगतीं नन्वेति सिद्धाधिपः ।।
अर्थः_ 'हे कामधेनु । तू अपने गोमयरस से भूमि का सिचन कर दे । हे रत्नाकरो ! तुम अपने मोतियों से स्वस्तिक बनाओ!
__ हे दिग्गजो ! तुम अपनी सूढ को फैला कर कल्पवृक्ष के पत्रों को लेकर तोरणों की रचना करो क्योंकि सिद्धराज पृथ्वी को जीतकर यहाँ आ रहा है ।'
हेमचन्द्राचार्य जी के मुख से इस स्तुति को सुनकर विद्वप्रिय सिद्धराज अत्यन्त ही प्रसन्न हो उठा।
अवंति के राजभण्डार में से अनेक ग्रन्थ रत्न मिले थे । सिद्धराज ने नियुक्त पंडितों को पूछा, ये कौन से ग्रन्थ हैं ? एक पंडित ने कहा मालवाधिपति भोजराज के द्वारा बनाया हुआ शब्दशास्त्र 'भोज व्याकरण' है । भोजराज के द्वारा निर्मित अन्य अलंकार, तर्क तथा निमित्तशास्त्र भी है। इसके साथ अन्य विद्वानों के द्वारा विरचित गणित, ज्योतिष, वास्तु, सामुद्रिक, स्वप्न, वैद्यक, अर्थशास्त्र, मेघमाला, राजनीति तथा अध्यात्म आदि ग्रन्थ इस भण्डार में है।'
इस बात को सुनकर सिद्धराज को बड़ा खेद हुआ । क्या इस देश का अपना साहित्य भण्डार नहीं है?' सोचकर सिद्धराज ने कहा, क्या इस गुर्जर देश में रचे गये सुन्दर शास्त्र नहीं हैं ? क्या इस देश में ऐसे सर्वशास्त्र निपुण विद्वान नहीं हैं ?