Book Title: Shwetambar Jain Tirth Darshan Part 01 Author(s): Jinendrasuri Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala View full book textPage 5
________________ में से कटुता, राग द्वेष, इा, अभिमान, माया, लोभ नही गया और क्षमा, नम्रता आदि नही आये तो इस तुंबी के समान यात्रा कटुता वाली ही होती है ।' पुत्र समझ गया और अपने जीवनमें कटुता जैसे दुसण को दूर किये। इसी प्रकार तीर्थ यात्रा करनेवाले पुण्यात्माओने अपने जीवन सुधार करना चाहिए । विनय, विवेक, सज्जनता, जिनभक्ति, सम्यग्श्रद्धा, सदाचार, अभक्ष्य त्याग, रात्रिभोजन त्याग, विकार, विकृति आदि से दूर रहना चाहिए । स्वार्थ, मोह, मान्यता, लोभ, स्नेह आदि से यात्रा भी निष्फल होती है । परमात्माकी भक्ति ही यात्रा है । देव देवीओंके दर्शन बाधा आदि से यात्रा करना वह सचमुख यात्रा नही है । (१) लोकोत्तर (२) लौक्ति ओर दोनो भी देव ओर गुस्की मान्यता कर वो चार प्रकारका मिथ्यात्व शास्त्रमें लिखा है | जीवन सुधारने वाला तीर्थ का महिमा करता है और व्यसन, विषय, कषायमें घेरे लोंग तीर्थ का महिमा हटाता है । ठरने की सुविधा, खाने पीने की चिंता और हिरना फिरने का लोभ होवे तो यात्रा का भाव दबा जाता है । एसे यात्री तरने के अलावा डूबने का मार्ग को पाता है और तीर्थ को दूषित करता है इसे ज्ञानीओंने 'तीरथकी आशातना नवि करीए' । ऐसा लिखकर यात्रीओं को सावधान कियें है। सभी सच्चे भाव से संसार के तीरने वास्ते यात्राएं करें और सद्गति और शिव सुख को पायें और इसी हेतु इस तीर्थ दर्शन से बहोत तीर्थो की, तीर्थंकर देवोंकी यात्रा दर्शन, पूजन, स्तव, ध्यान आदि सब करे और सद्गति और शिवसुख को निकट लायें ऐसी शुभ अभिलाषा । संवत २०५५ पोष सुद १० सोमवार ता. २७-१२-९८ हालारी धर्मशाला - शंखेश्वर तीर्थ जिनेन्द्रसूरि प्रथम पृष्ठ चित्र परिचय : (१) चौदह स्वप्न (२) अष्ट महाप्रातिहार्य (३) अष्ट मंगल (४) अष्ट प्रकारी - पूजा (५) पंच कल्याणक पूजा (६) बारह व्रत पूजा (७) सत्तरभेदी पूजा के प्रकार दीये है। द्वितीय पृष्ठ चित्र परिचय : (१) २४ तीर्थंकर (२) नवपद मंडल (३) श्री नमस्कार महामंत्र (४) श्री गौतम स्वामी बताये हैं. एक नोंध : इस तीर्थ दर्शन ग्रन्थमें जहा जिनमदिर को धजा चढाने वास्ते सीडीयाँ लगाइ है वो ठीक नहीं है । एक घंटे के कार्य करने को सारे वर्ष तक सीडीका बोज स्हवे, पक्षी गण चरक करे । मृतक और माटन लाये डाले वहा बडी आशातना होवे । पालख बांध के धजा चढाये और सीडीसें उपर चढ सके । फीर दोरी बांधके खीचके नीचे से भी धजा चढा सके वह विधि युक्त और कल्याणकारी है।Page Navigation
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