Book Title: Shrutsagar Ank 2012 07 018
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १० (१) श्री आदिनाथ भगवंत (३) श्री संभवनाथ भगवंत धर्म संस्कृति के स्थापक श्री आदिनाथ थे वीतरागी, जंगलों में जा ध्यान लगाया सुख-संपत्ति सारी त्यागी। नाभिनंदन थे वो माता मरुदेवी के राज दुलारे, प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को वंदन नित्य हमारे ।। www.kobatirth.org (५) श्री सुमतिनाथ भगवंत २४ तीर्थंकर स्तवना सेनानंदन सुखदायक ओ, संभव जिनवर वंदन हो, कर्मताप से दग्ध हुए जीवों के लिए तुम चंदन हो । राजा जितारी के कुलदीपक शुद्ध बुद्ध और सिद्ध हुए. त्रिभुवनतिलक हे तीर्थंकर सारे जग में प्रसिद्ध हुए ।। (७) श्री सुपार्श्वनाथ भगवंत (४) श्री अभिनंदन स्वामी (२) श्री अजितनाथ भगवंत जितशत्रु नंदन तुमने सब आंतर शत्रु जीत लिए. ओ विजयासुत विश्व विजेता, त्रिभुवन तुमसे प्रीत किये। अजितनाथ अविनाशी जिनवर ! वास्तव में अजित हुए, तुम सृष्टि के सब जीव तुम्हारे श्रीचरणों में नमित हुए ।। सुमतिनाथ जिनेश्वर हम पर करके कृपा सम्मति देना, रानी मंगला के बेटे हमें तुम गुण की सम्पति देना । मेघ नृपति के हो लाड़ले संघ-तीर्थ के हो भूषण, तन-मन और जीवन के हमारे दूर करो सारे दूषण ।। (६) श्री पद्मप्रभस्वामी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिनंदन स्वामी को वंदन करते हैं शुद्ध भाव से, आधि, व्याधि और उपाधि मिटती प्रभु के प्रभाव से । संवर राजा के जाये सिद्धार्था के सुत सुखकारी, दर्शन-पूजन अभिनंदन का पापविनाशी दुःखदायी ।। जुलाई २०१२ तीन जगत के तारक ओ तीर्थंकर सबकी आश हो तुम, पृथ्वीमाता के नंदन सुखकारी स्वामी सुपार्श्व हो तुम । सुनो विनती हम भक्तों की दुःखड़े सारे दूर करो, हम निशदिश करते हैं प्रार्थना आज प्रभु मंजूर करो ।। • भद्रबाहुविजय पद्मप्रभ जिन पाप जलाये ताप मिटाये जीवन के, सुसीमा सुत सुख के सागर संताप हटाये तन-मन के । प्रभुकृपा के कमल हमारे मन उपवन में खिला करे, जीवन पथ पर प्रभो तुम्हारा मार्गदर्शन मिला करे ।। For Private and Personal Use Only (८) श्री चन्द्रप्रभस्वामी चंदा की किरनों से शीतल चन्द्रप्रभ स्वामी प्यारे, लक्ष्मणा रानी के हैं दुलारे सृष्टि के तारन हारे। स्नेह-सुधा बरसा के हमारे पाप ताप को शांत करो, विषय विकारों में डूबी इस आत्मा को उपशांत करो।। -

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