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जुलाई २०१२ कोबातीर्थ के ट्रस्टी श्री मुकेशभाई एन. शाह ने संस्था का परिचय देते हुए कहा कि 'पूज्य गुरुदेव ने अंग और आगम से भर दिया है माँ सरस्वती का बसेरा.' ज्ञानमंदिर में पूज्य साधु-साध्वीजी, संपादकों-संशोधकों आदि के अध्ययन-संशोधन की भरपूर सामग्री है. इस संकलन का लाभ चतुर्विद् संघ को प्राप्त भी हो रहा है. इस संस्था को पूज्य श्रमण भगवंतों का मार्गदर्शन मिल रहा है तथा यहाँ के सभी ट्रस्टी पूर्ण सेवा भाव से संस्था का सुचारु रूप से संचालन कर रहे हैं. संस्था में कार्य करने वाले कार्यकर्ता भी पूरी निष्ठा एवं मनोयोग से कार्य करते हैं.
पूज्य आचार्य भगवंत के चातुर्मास अवधि में आयोजित कार्यक्रमों की संक्षिप्त जानकारी देते हुए श्री मुकेशभाई एन. शाह ने कहा कि इस चातुर्मास में देवभक्ति, गुरुभक्ति एवं श्रुतभक्ति की त्रिवेणी प्रवाहित होगी. उपस्थित श्रद्धालुओं से निवेदन पूर्वक कहा कि आप सभी यहाँ पधार कर पुण्य लाभ अर्जित करें.
कार्यक्रम के अंत में श्री किरीटभाई कोबावाला ने धन्यवाद ज्ञापन किया.
मंगल प्रवचन के पश्चात् उपस्थित गुरुभक्तों के लिये साधर्मिक वात्सल्य की बहुत ही सुंदर व्यवस्था की गई. जिसके लाभार्थी परिवार थे सोहनलालजी चौधरी, अहमदाबाद एवं मातुश्री धनलक्ष्मीबेन नवीनचंद जगाभाई शाह, शांताक्रूज, मुंबई. संपूर्ण कार्यक्रम पूर्ण धार्मिक वातावरण में हर्षोल्लास पूर्वक सम्पन्न हुआ.
रविवारीय प्रवचन शृंखला दि.१-७-२०१२ के दिन चातुर्मास के दौरान आयोजित रविवारीय शिक्षाप्रद मधुर प्रवचन शृंखला का मंगल प्रारंभ श्री संकेत शाह (साबरमती) के द्वारा प्रस्तुत गुरुभक्तिमय सुमधुर गीत की प्रस्तुति से हुआ. प. पू. राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. ने 'अंतर्जगत की यात्रा' विषय पर हृदयस्पर्शी प्रवचन देकर उपस्थित श्रोताजनों के हृदय को आह्लादित करते हुए वीतराग परमात्मा की वाणी का रसास्वाद करवाया. शिबिर के पश्चात उपस्थित शिबिरार्थी एवं गुरुभक्त महेमानों की साधर्मिक भक्ति की सुंदर व्यवस्था रखी गई थी. प्रस्तुत शिबिर का पुण्य लाभ शेठश्री नवीनमाई डी. महेता परिवार (डी. नवीनचंद्र एंड कं., मुंबई) पालनपुर-मुंबई ने लिया.
हमारे जीवन में कल्याणमित्र बनायें - मुनि पुनितपद्मसागर
मित्रता का अनुभव सहानुभूति से होता है. जीवन में अच्छे और सच्चे मित्र जीवन के विपरीत प्रवाह को सही दिशा में मोड़ देते हैं.
इस दुनिया में एक भी गुलाब ऐसा नहीं मिलेगा जो बिना कांटों का हो, किन्तु मित्रता का गुलाब ऐसा विलक्षण है जिसमें कांटो की चुभन नहीं होती.
ये स्पष्ट है जीवन की महक मैत्री है.
आज मात्र स्वार्थजनित इरादों को अंजाम देने हेतु मित्रता का नाटक खेला जा रहा है. यही कारण है कि आज की मित्रता के तले न केवल संपत्ति और साथी असुरक्षित है, अपितु पारस्परिक विश्वास भी खतरे में है.
मित्र बनाते वक्त और मित्रता रखते समय पूर्णतया सजग रहकर मित्रता की भूमि को विश्वास के जल से सिंचते रहना चाहिए, विपत्ति में भी जो साथ न छोड़े वही सच्चा मित्र है, कल्याणमित्र है. भगवान महावीर कहते हैं जैसे मित्र से मैत्री रखते हैं वैसे दुश्मन के प्रति भी मैत्री होनी चाहिए. वह इन्सान महान है जो दुश्मन को भी अपना मित्र बना लेता है.
हमारे मन-मस्तिष्क में यह भाव सदा प्रवाहित रखना होगा 'मित्ति मे सव्व भूएस मेरी सब जीवों से मैत्री है अर्थात मेरा किसी से वैरभाव नहीं है.
ऐसी सोच और समझ मित्रता का श्रेष्ठतम परिचय कराती है. अपने जीवन में कल्याणमित्र बनाकर हम अपने जीवन को सार्थक एवं सफल बनायें.
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