Book Title: Shrutsagar Ank 2012 05 016
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वि.सं.२०७८- गंगाप्रमुख महानदी, सतरि ७० थुणि प्रासाद रे। दीर्घ वैताढ्य पर्वत तिहां, सतरिसउ १७० प्रासाद रे ||९|| देव०।। त्रिणसई असीइ ३८० कुड तिहां, पीस २० जंगम गिरि जाण रे। पांच ५ मेरुनी चूलिका, जिणहर पांच ५ पमाण रे ||90 देव०।। सई इग्यार सतरि ११७० अधिकां, जंबू प्रमुख तरु सार रे। वट्ट वेयड्ढे वीस २० चेई, थुणितां भवनउ पार रे ||११|| देव०।। सोहम ईसान सुरतणी, इंद्राणी वरनारि रे। अष्टम द्वीपई राजधानी तिहां, जिणहर सोल १६ संभार रे ।।१२।। देव०।। ज्योतिषी व्यंतर टालि करि, त्रिभुवन जिणहर मान रे। लाख सतावन आठ कोडि, दुइसई ब्यासी मान रे ।।१३।। देव०।। ज्योतिषी व्यंतर ठाम विना, त्रिभुवन प्रतिमा मान रे। कोडि बैतालीस पनरसय, लाख अट्ठावन मान रे ।।१४।। देव०।। सहस छत्रीस वली प्रतिमा ऊपरि, असीइ १५४२५८३६०८० प्रमाण रे। अहनिसि भक्त वांदस्यउ, जिम पामउ कल्याण रे ||१५|| देव०॥ भरतमहाराजकारी, अष्टापदि प्रासाद रे। गिरिनार आबू सेजेजई, भूमि ऊपरि प्रासाद रे ||१६|| देव०।। राजगृही वैभारगिरइ, विपुल उदयगिरि सार रे। एह प्रमुख संमेतगिरि, जिणहर वांदउ सार रे ।।१७।। देव०॥ तपगच्छनायक सिरगुरू, श्रीविजयदानगणधार रे । तासु सीस हर्षसागर, पभणइ पीठ मझारि रे ।।१८ ।। देव०।। सासत जिणहर जिनप्रतिमा, स्तवन भणइ नरनारि रे। देवमनुष्य सुख अनुभवी, पछइ सिवसुख सार रे ||१९।। देव०।। इति श्री शास्वतजिनप्रतिमा स्तवन ।। सरलार्थ-सभी जिनवरों के चरण में वंदनकर पुनः सद्गुरु को भली भाँति प्रणाम करके शारवतजिन प्रतिमाओं का वर्णनपूर्वक स्तवन करूँगा1१। हास्य, राग टालकर आशातनारहित होकर अपार हर्षोल्लासपूर्वक देवदेवी वहाँ मिलने आते हैं।२। भवनपति देवताओं से कहते हैं कि सात करोड़ बहत्तर लाख परिमाण में जिनगृह का मान है जो सभी जानते हैं। वहाँ वाण, व्यंतर सहित असंख्य प्रमाण में जिनगृह हैं, असंख्य जिनप्रतिमाएँ वहाँ विद्यमान हैं. मैं उन्हें तीनों काल में (भावपूर्वक) वंदन करता हूँ।३। ऊर्ध्वलोक में चौरासी लाख सत्तानवे हजार तेवीस (८४९७०२३) संख्यात्मक जिनप्रासाद हैं।४। आठवें नंदीश्वरद्वीप में बावन जिनचैत्य हैं. चौबारे (चौतरफा, चतुर्मुख) जिनप्रासाद के अन्तर्गत एक चैत्य में एकसौ चौबीस, इस प्रकार चार कुंडल चार रूचक मिलकर १२४४६०%D७४४० जिनबिंब जानने योग्य है ५। वहाँ कुलगिरि नामक तीस पर्वत जो दस कुरुक्षेत्र प्रमाण विशाल है. भद्रसालप्रमुख पर्वत के ऊपर अरसी जिनचैत्य हैं।६ । गजदंत नामक पर्वत पर २० चैत्य, वक्षस्कार पर ८० जिनगृह, वहाँ चारों दिशाओं के चार प्रासाद मनुष्योत्तरपर्वतस्थित जिनप्रतिमा व इक्षुकारगिरि स्थित चार चैत्यों में कुल ४८० जिनबिंबों को मैं प्रणाम करता हूँ।७। दिग्गजगिरि पर चालीस चैत्य, द्रहों में कुल ८० जिनस्थान, कंचनगिरि में एक हजार चैत्य तथा इन चैत्यों में कुल संखप्रमाण जिनबिंबों को (भावपूर्वक) वंदन करता हूँ।८ । गंगा आदि ७० प्रमुख नदियाँ, इतने (७०) ही जिनप्रासाद तथा दीर्घवैताढ्य पर्वत पर कुल १७० संख्याप्रमाण जिनप्रासादस्थित जिनप्रतिमाओं को हर्षपूर्वक नमस्कार करता हूँ।९ । वहाँ ३८० जलकुंड प्रत्येक कुंड प्रति एक जिनचैत्य तथा प्रत्येक जिनचैत्य में १२० जिनबिंब, नैषधादि २० जंगमपर्वत व इतने प्रमाण में ही जिनप्रासाद हैं. एक प्रासाद में १२० जिनबिंब हैं. इस प्रकार १२०x२०-२४०० जिनबिंब, मेरुपर्वत की ५ चूलिकाएँ, इसी प्रमाण में जिनचैत्यस्थित जिनप्रतिमाओं को (भक्तिपूर्वक) नमन करता हूँ।१०। ११७० संख्या प्रमाण जंबू आदि प्रमुख वृक्ष जितने जिनप्रासाद तथा २० वृत्त वैताढ्य प्रमाण For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20