Book Title: Shrutsagar Ank 1996 04 003 Author(s): Manoj Jain, Balaji Ganorkar Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba View full book textPage 1
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र का मुखपत्र श्रृत सागर आशीर्वाद : राष्ट्रसंत जैनाचार्य श्रीपद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. अंक : ३ वैशाख वि. सं. २०५२, अप्रैल १९९६ प्रधान संपादक : मनोज जैन संपादक : डॉ. बालाजी गणोरकर ज्येष्ठ वदि-३ स्वर्गारोहण दिवस के अवसर पर योगनिष्ठ शासन प्रभावक आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी - डॉ. रितेन्द्र वी. शाह आज से कुछ वर्षों पूर्व देशभक्त पं.लोकमान्य तिलक का एक वाक्य पढ़ने में आया . उन्होंने लिखा था कि यदि मुझे पता होता कि आप 'कर्मयोग' लिख रहे हैं , तो मैं अपना कर्मयोग लिखने की चेष्टा ही न करता. प्रस्तुत वाक्य योगनिष्ठ आचार्यवर्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज को लिखा गया था. जिसको पढ़कर मेरे मन में आचार्यश्री का कर्मयोग पढ़ने की इच्छा हुई थी तथा आचार्यश्री के जीवन एवं कार्य के प्रति जिज्ञासा पैदा हुई. जैसे-जैसे मैं आचार्यश्री काठमांडु (नेपाल) में प्रथम निर्मित महावीरालय का दृश्य के जीवन के विषय में जानकारी प्राप्त करता गया उनकी महानता एवं प्रभावक्ता का चित्र स्पष्ट होता गया.भक्ति भाव से मेरा मस्तक झुक गया.ऐसे महान आचार्यश्री के जीवन के एक राष्ट्रसंत आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी का दो प्रसंगों की चर्चा यहाँ उपयुक्त होगी. उत्तराखण्ड में विहार ____ जब समाज के ऊपर अनेक कुरिवाजों एवं गलत मान्यताओं का गहन अन्धकार छाया हुआ था तब गुजरात के विजापुर नामक छोटे से कस्बे में एक दिव्य ज्योति का उदय हुआ, प.पू. राष्ट्रसन्त, आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. आदि ठाणा कलकत्ता जिनका नाम बहेचर रखा गया. बहेचर बचपन से ही निडर, पराक्रमी, तीव्र-बुद्धि एवं से भव्य चातुर्मास पूर्ण कर के शिखरजी तीर्थ का 'छ'री पालित संघ तथा शिखरजी | प्रतिभाशाली था. अतः कई लोगों ने भविष्यवाणी की थी कि यह लड़का आगे चलकर बहुत में शताधिक जिन मूर्तियों की अंजनशलाका एवं प्रतिष्ठा आदि भव्य रूप से करवा | बड़ा योगी बनेगा. स्वयं पटेल ज्ञाति में जन्मे थे तथापि साधुजनों की संगति से जैनधर्म के प्रति कर क्षत्रिय कुंड तीर्थ पधारे. वहां पर लछवाड़ तथा आस-पास के गांवों के अन्य अनुरागी बन गए.धीरे-धीरेजैन धर्म के सिद्धान्तोंको जानने की जिज्ञासा हुई.अतःजैन पाठशाला जाति के लोगों ने खूब भव्य सामैया किया जिसमें करीबन ३ हजार से अधिक में जाकर नमस्कार महामन्त्र एवं प्रतिक्रमण सूत्र आदि का अभ्यास किया. किन्तु इतने से उनको लोग थे. क्षत्रिय कुंड तीर्थ पहाड़ के ऊपर वहाँ के आदिवासी लोगों ने देशी वाजिंत्र सन्तोष न हुआ. उनका मन तो धर्म के गूढ तत्त्वज्ञान एवं रहस्यों में लगा हुआ था. अपनी इच्छा के साथ ५०० से ६०० की संख्या में नाचते-गाते हुए आचार्यश्री का सामैया किया. पर्ति के लिए वे महेसाणा स्थित जैन संस्कृत पाठशाला में अध्ययन हेत गए.वहाँ अल्प काल में जिलाधीश महोदय की हाजरी में एक बड़ी सभा का आयोजन लछवाड़ वालों ने ही जैनधर्म के मूलभूत सिद्धान्तों का ज्ञान प्राप्त कर लिया और अध्यापन कार्य में लग गए. किया, जिसमें अभिनंदन पत्र आचार्यश्री को अर्पण किया गया. अध्यापन कार्य करते-करते आध्यात्मिक भावना का उदय हुआ. अध्यापन कार्य छोड़कर मुनि पूज्य आचार्यश्री वहां से गुणियाजी तीर्थ पधारे, वहां पर भी तीर्थ की ओर श्री सुखसागर जी महाराज केपास जाकर असार संसार का त्याग कर परम पावनकारी भागवती से खूब भव्य स्वागत किया गया. फिर पावापुरीजी पधारे, वहां पर तीर्थ की कमेटी दीक्षा अंगीकार की. अब उनकी साधना प्रारम्भ हुई जो जीवन के अन्त तक चलती की ओर से भव्य सामैया किया गया, जिसमें हाथी-घोड़े व बेंड के साथ सारे गांव रही.आत्मसाधना में लीन होते हुए भी वे समाज के कल्याण के प्रति सजग थे. की जनता हाजिर थी. उस दिन पूरे गाँव को सजाया गया था. उस समय लौकिक पर्व के दिनों में अन्य धर्म में बलि चढ़ाई जाती थी. लोग पशुओं की उपस्थित विशाल जनसमूह को सम्बोधित करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि भगवान महावीर केवल जैनियों के ही नहीं बल्कि पूरी मानवता के प्रतिनिधि थे. बलि को धर्म मानते थे. ऐसी हिंसक क्रिया के कारण असंख्य निर्दोष प्राणियों की हत्या होती वे लोकोत्तर पुरुष थे, जिन्होंने सम्पूर्ण मानवता के उद्धार के लिये अपना जीवन थी. इतना ही नहीं ऐसे क्रूर कर्म को राज्याश्रय मिला हुआ था. राजा भी प्रस्तुत हिंसा में भाग अर्पण कर दिया. उन्होंने कहा कि आज देश और दुनिया में शांति और सुव्यवस्था लेते थे. इस पशु हिंसा से आचार्यश्री का हृदय द्रवित हो उठा. उन्होंने पशु हिंसा को रोकने का कायम करने के लिए भगवान महावीर के सत्य, अहिंसा, अस्तेय एवं अपरिग्रह के निश्चय किया. एक बार वे वड़ोदरा में थे. आचार्यश्री के पास विद्या प्रिय राजा सयाजीराव संदेश को न केवल प्रचारित करने की वरन इन आदों को जन-जन के जीवन में | गायकवाड़ आते थे और धर्म चर्चा आदि करते थे.आचार्यश्री के ज्ञान एवं आचार से प्रभावित उतारने की आवश्यकता है. होकर राजा ने उन्हें अपने महल में प्रवचन हेतु आमन्त्रित किया, तब आचार्यश्री ____ आपने कहा कि पावापुरी की मिट्टी बड़ी पवित्र है जहाँ भगवान महावीर ने उक्त पशुहिंसा की बात कही और उसको स्थगित करने की प्रेरणा की. आचार्यश्री ने अपना अंतिम उपदेश दिया और यहीं पर निर्वाण भी प्राप्त किया. अधिक से का प्रभाव अद्भुत था. उनकी बात सुनते ही राजा ने पशुहिंसा रोकने का आदेश अधिक तीर्थंकरों की जन्म, कर्म और निर्वाण भूमि होने का सौभाग्य भी बिहार दे दिया. इस प्रकार आचार्यश्री ने बहुत बड़ी पशुहिंसा सदा के लिए बंद करवा [शेष पृष्ठ २ पर दी. [शेष पृष्ठ २ पर For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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