Book Title: Shrutsagar 2016 11 Volume 03 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 19 ॥३१॥ ॥३२॥ ॥३३॥ ॥३४॥ ॥३५॥ श्रुतसागर नवम्बर-२०१६ हरि कहै दुक्करकारी ज छै सहि, सुर असुरादिक ने पिण एह रे। आतम संचित कर्म खप्या विना, करि न सकै कोइ एहनो छेहरे ॥३०॥ थावच्चा सुत कहे ते कारणे, कर्म खपावा चाहुं स्वाम रे। कृष्ण नरेसर इम उद्घोषणा रे, नगरी मांहि करावै ताम रे __सुणजो सहु कोय देवाणुप्पिया रे ।। आंकणी॥ थावच्चा सुत संयम आदरै, मन शुद्ध नेम जिणेसर पास रे। जो कोई राजा युवराजा वली रे, सेठ सेनापति सुकृत निवास रे साथ करै थावच्चा सुत तणो, अनुमति द्यै तसु कृष्ण नरेसर रे। पाछल पिण तेहना परिवारनी, सार संभाल करै सुविशेष रे सहस पुरुष संयम सन्मुख थया, तसु अनुरागे तिहां तिण वार रे । ते देखीनै कृष्ण नरेसरू, दीक्षा उच्छव करे उदार रे समवसरण पासे आवी करी, शिबिका थी ऊतरै कुमार रे। कृष्ण नरेसर निज आगल करी, प्रभु पासै ल्यावै सुविचार रे कुमर उतारे भूषण अंगथी, आपै माय भणी निस्संग रे। माता आंखें आंसु नाखती, सीखामण आपी मनरंग रे सैहथ लोच कौँ संयम वौँ, सहस पुरुष साथे श्रीकार रे। थावच्चा सुत ते मुनिवर थया, अनुक्रम चउदे पूरब धार रे प्रभु आपै थावच्चा सुत भणी, शिष्य पणै ते साधु हजार रे। प्रभु आदेशे मुनिवर एकदा, बाहिर जनपद करे विहार रे ढाल-४ (ढाल- श्री जिनप्रतिमा हो जिन सारिखी कही एहनी) संवेगी नीरागी हो मुनिवर तिण समें, करता शुद्ध विहार । सैलगपुर नै हो पासे समोसर्या, नृप उद्यान मझार सेलग राजा हो आव्यो वांदवा, सांभलि धरम उदार । सद्गुरु पासै हो ततखिण आदर्या, श्रावक ना व्रत बार पंचसय मंत्री हो श्रावक व्रत ग्रह्यां, पंथग प्रमुख उल्लास। साधूजी आवे हो अनुक्रमें विचरतां, सोगंधिका पुरी पास ॥३६॥ ॥३७॥ ॥३८॥ ॥३९॥ ॥४०॥ ॥४१॥ For Private and Personal Use Only

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