Book Title: Shrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke Author(s): Vijay Doshi Publisher: Vijay Doshi View full book textPage 7
________________ 909009090090900909090090090090900909009090090090905 अनंत नी गुलझारमा ... (राग - होठों से झूलो तुम) एक पल पण तारा विना, रहेवाय ना, रहेवाय ना, ऊर्मि ऊनी अंतर की, पांपण में सचवाय ना। एक पल ... 'अंतर अने आंखों मां' थी भीनी असर नु जल जाय ना, पंखी चहेरा नुं ऊड़ी जतां, __मालो खली ए सहेवाय ना, 'पण' लीधा छे भवो भवनां, गुणीजनना, सगपण ना। एक पल ... 'श्रुत-भीनी आंखों में, बिजली चमके', जगाड़े मन, प्रतिबिंब की आभा मां. ऊभराये मन का गगन, 'श्रद्धांध' चहे अंत ने, अनंत नी गुलझार मां। एक पल ... 'श्रद्धांध' 500900509005000500050650090050505050505050505050Page Navigation
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