Book Title: Shravak Pragnapti
Author(s): Keshavlal Premchandra
Publisher: Nirnaysagar Press
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उमास्वातिवाचककृतश्रावकप्रज्ञाप्याख्यप्रकरणं
हरिभद्रसुरिविरचितव्याख्यासमेतम् ॥
स्मरणं यस्य सत्त्वानां तीव्रपापौघशान्तये ।
उत्कृष्टगुणरूपाय तस्मै श्रीशान्तये नमः ॥१॥ स्वपरोपकाराय श्रावकप्रज्ञप्त्याख्यप्रकरणस्य व्याख्या प्रस्तूयते । तत्र चादावेवाचार्यः शिष्टसमयप्रतिपालनाय विघ्नविनायकोपशान्तये प्रयोजनादिप्रतिपादनार्थ चेदं गाथासूत्रमुपन्यस्तवान्॥
अरहते वंदितासावगधम्म दुवालसविहं पि। वोच्छामि समासेणं गुरूवएसाणुसारेणं ॥१॥ अर्हतो वन्दित्वा श्रावकधर्म द्वादशविधमपि । वक्ष्ये समासेन गुरूपदेशानुसारेण ॥ १॥ इह हि शिष्टानामयं समयो यदुत शिष्टाः क्वचिदिष्टे वस्तुनि प्रवर्तमानाः सन्त इष्टदेवतानमस्कारपूर्वकं प्रवर्तन्त इत्ययमप्याचार्यों न हि न शिष्ट इत्यतस्तत्समयप्रतिपालनाय, तथा श्रेयांसि बहुविघ्नानि भवन्तीति ( उक्तं च

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