Book Title: Shravak Nitya Krutya
Author(s): Jinkrupachandrasuri
Publisher: Nirnaysagar Press
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विराधना ॥३॥ परिहरं ॥ मनोगुप्ति का विच ॥२॥ कायगुप्ति ॥ ३ ॥ श्रादरं ॥ मनोदंग ॥१॥ वचनदंग ॥२॥ कायदंग ॥ ३॥ परिहरु ॥ यह नव पमिलेहण जिमणे हाथ करणी ॥ यह पच्चीश बोल मुहपत्तीके जानने ॥
॥ अब अंगकी पच्चीश पमिलेहण दिखते हैं ॥६॥ कृष्णवेश्या ॥१॥ नीललेश्या ॥२॥ कापोतलेश्या ॥३॥ ए तीन निसामे मस्तकें परिहरं ॥
शधिगारव ॥१॥ रसगारव ॥३॥शातागारव ॥३॥ ए तीन मुखे परिहरु॥
॥ मायाशय ॥१॥ नियाणशस्य ॥ ३ ॥ मिहादसणशट्य ॥ ३॥ए तीन हीये परिहरु ।
॥ क्रोध ॥१॥ मान ॥२॥ए दोय जिमणे खंले परिहरु॥ ॥ माया ॥१॥ लोन ॥॥ ए दोय मावे ॥ खंने परिहरु॥
॥ हास्य ॥१॥रति ॥२॥ अरति ॥ ३ ॥ ए तीन माबे हाथे परिहरूं ॥
॥जय ॥१॥शोक ॥२॥ गंवा ॥ ३॥ ए तीन जिमण हाथे परिहरु ॥
॥ पृथ्वीकाय ॥१॥ अप्पकाय ॥२॥ तेजकाय ॥३॥ ए तीन माबे पगे परिहरं ॥
॥वायुकाय ॥ १ ॥ वनस्पतिकाय ॥॥ त्रस काय ॥३॥ ए तीन जिमणे पगे परिहरं ॥ इति पमिलेहणा संपूर्णा ॥६॥ .. ॥ पी3 खमा होय के श्वामि खमासमणका पाठ कहे के
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