________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ अहम् ॥ प्राचीन पुस्तकोघार फन्म-ग्रन्थांकः ॥ १ ॥
श्रीश्रावकनित्यकृत्य संग्रहः
॥ अथ नवकारमंत्रम् ॥ ॥ णमो अरिहंताणं ॥१॥णमो सिघाणं ॥॥ णमो आयरियाणं ॥३॥ णमो उवद्यायाणं ॥ ४॥ णमो लोए सबसाहूणं ॥ ५ ॥ एसो पंच णमुक्कारो ॥ ६॥ सवपावप्पणासणो ॥ ७ ॥ मंगलाणं च सवेसि ॥ ७ ॥ पढमं हवश् मंगलं ॥ ए॥ ॥ इति ॥१॥ यह नवकार तीन वेर गुण के थापनाजीकी थापना करे, तब तेरे बोल चिंतवे, सो कहते हैं।
॥ अथ श्रापनाचार्यजीकी तेरे पमिलेहणा ॥ ॥ शुद्ध स्वरूप धारे ॥१॥ज्ञान ॥ १॥ दर्शन ॥५॥ चारित्र सहित ॥ ३ ॥ सईहणा शुद्धि ॥ १॥ प्ररूपणा शुद्धि ॥॥ फरसना शुद्धि ॥ ३ ॥ सहित पांच श्राचार पाले ॥१॥ पलावे ॥२॥ अनुमोदे ॥ ३ ॥ मनोगुप्ति ॥ १॥ वचन गुप्ति ॥ ॥ काय गुप्ति ॥ श्रादरे ॥ ३ ॥ एवं तेरे बोल कहे ॥ ॥ इति ॥२॥
॥पी गुरुगुण सहित श्रीगुरुजीके सामने अथवा थापनाचार्य जीके सामने खमा होके तीन खमासमण देवे, सो लिखते हैं।
For Private And Personal Use Only