Book Title: Shravak Dharm aur Uski Prasangika Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur View full book textPage 4
________________ करना अधिक कठिन है। क्योंकि साधक जीवन में विघ्नों से दूर रहकर निर्दोष चरित्र का पालन करना उतना कठिन नहीं है, जितना कि विघ्नों के बीच रहकर उसका पालन करना । संन्यास मार्ग एक ऐसा मार्ग है, जिसमें अनासक्ति या वीतरागता की साधना के लिए विघ्न-बाधाओं की सम्भावना कम होती है। सन्यासमार्ग की साधना कठोर होते हुए भी सुसाध्य है, जबकि गृहस्थ मार्ग की साधना व्यावहारिक दृष्टि से सुसाध्य प्रतीक होते हुए भी दुःसाध्य है, क्योंकि आध्यात्मिक विकास के लिए जिस अनासक्त चेतना की आवश्यकता है, वह संन्यस्त जीवन में सहज प्राप्त हो जाती है उसमें चित्त विचलन के अवसर अति न्यून होते है, जबकि गृहस्थ जीवन में चित्त विचलन के अवसर अत्यधिक हैं। गिरि-कन्दरा में रहकर ब्रह्मचर्य का पालन उतना कठिन नहीं है, जितना कि नारियों (सुन्दरियों) के मध्य रहकर उसका पालन करना । प्रेमिका वेश्या के घर में चातुर्मास के लिए स्थित होकर ब्रह्मचर्य की साधना करने वाले स्थूलि भद्र को उन सैकड़ों - हजारों मुनियों की अपेक्षा श्रेष्ठ माना गया, जो गिरि - कन्दराओं में रहकर मुनिधर्म की साधना कर रहे थे। क्या विजय सेठ और सेठानी की ब्रह्मचर्य की कठोर साधना की तुलना किसी गृहस्थ जीवन का परित्याग करने वाले मुनि की ब्रह्मचर्य साधना से की जा सकती हैं ? राग-द्वेष, आसक्ति और ममत्व के प्रसंगों की उपस्थिति गृहस्थ जीवन में अधिक होती है - उन प्रसंगों में भी जो अपने को निराकुल और नियंत्रित रख सकता है, वह महान है। __ सन्यास मार्ग में तो इन प्रसंगों की उपस्थिति के अवसर ही अत्यल्प होते हैं। अतः संन्यास मार्ग निरापद और सरल है। गृहस्थ धर्म से आध्यात्मिक विकास की ओर जाने वाला मार्ग फिसलन भरा है, जिसमें कदम-कदम पर सजगता की आवश्यकता है। यदि साधक एक क्षण के लिए भी वासना के आवेगों में नही संभला तो उसका पतन हो जाता है । वासनाओं के बवण्डर के मध्य रहते हुए भी उनसे अप्रभावित रहना सरल नही हैं। अतः कह सकते हैं कि गृहस्थ जीवन की साधना मुनि जीवन की साधना की अपेक्षा अधिक दुःसाध्य हैं और जो ऐसे साधन - पथ पर चलकर आध्यात्मिक उच्चता को प्राप्त करता है, वह मुनियों की अपेक्षा कई गुना श्रेष्ठ है। वस्तुतः गृहस्थ धर्म का पालन इसलिए अधिक दुःसाध्य है कि उसमें काजल की कठोरी में रहकर भी अपनी चरित्र रूपी चादर को बेदाग रखना होता है। काजल की कोठरी से बाहर रहकर तो कोई भी चरित्र रूपी चादर को बेदाग रख सकता है, किन्तु कोठरी में रहते हुए उसे बेदाग रख पाना अधिक सजगता और आत्मनियन्त्रण की श्रावकधर्म और उसकी प्रासंगिता : 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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