Book Title: Shravak Dharm aur Uski Prasangika
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 13
________________ दुष्प्रवृत्ति है। सट्टे के व्यवसाय का प्रवेश जैन परिवारों में सर्वाधिक हुआ है। व्यक्ति इस प्रकार के धन्धे में अपने को नियोजित कर लेता है, तो श्रमपूर्वक अर्थोपार्जन के प्रति उसकी निष्ठा समाप्त हो जाती है। ऐसी स्थिति में चोरी, ठगी आदि दूसरी बुराइयाँ पनपर्त है। आज इसके प्रकट-अप्रकट विविध रूप हमारे समक्ष आ रहे है। उनसे सतर्क रहन आवश्यक है, अन्यथा हमारी भावी पीढ़ी में श्रमपूर्वक अर्थोपार्जन की निष्ठा समाप्त हे जावेगी। यद्यपि इस दुर्गुण का प्रारम्भ एक मनोरंजन के साधन के रूप में होता है, किन्तु आगे चलकर यह भयंकर परिणाम उपस्थित करता है। जैन समाज के सम्पन्न परिवारों में और विवाह आदि के प्रसंगों पर इसका जो प्रचलन बढ़ता जा रहा है, उसके प्रति हमें एक सजग दृष्टि रखनी होगी, अन्यथा इसके दुष्परिणामों को भुगतना होगा। आज क युवावर्ग जो इन प्रवृत्तियों में अधिक रस लेता हैं, इसके दुष्परिणामों को जानते हुए भी अपनी भावी पीढ़ी को इससे रोक पाने में असफल रहेगा। 2. मांसाहार :- विश्व में यदि शाकाहार का पूर्ण समर्थक कोई धर्म है, तो वह मात्र जैन धर्म है। जैनधर्म में गृहस्थोपासक के लिए मांसाहार सर्वथा त्याज्य माना गया है। किन्तु आज समाज में मांसाहार के प्रति एक ललक बढ़ती जा रही है और जैन परिवारों में उसका प्रवेश हो गया है। अतः इसकी प्रासंगिकता पर चर्चा करना अति आवश्यक है। मांसाहार के निषेध के पीछे मात्र हिंसा और अहिंसा का प्रश्न ही नहीं, अपितु अन्य दूसरे भी कारण हैं। यह सत्य हैं कि मांस का उत्पादन बिना हिंसा के सम्भव नहीं है और हिंसा क्रूरता के बिना सम्भव नहीं है। यह सही है कि मानवीय आहार के अन्य साधनों में भी किसी सीमा तक हिंसा जुड़ी हुई है, किन्तु मांसाहार के निमित्त जो हिंसा या वध किया जाता है, उसके लिए वध-कर्ता का अधिक क्रूर होना अनिवार्य है। क्रूरता के कारण दया, करूणा एवं आत्मीयता जैसे कोमल गुणों का ह्रास होता है और समाज में भय, आतंक एवं हिंसा का ताण्डव प्रारम्भ हो जाता है। यह अनुभूत सत्य है कि वे सभी देश एवं कौमें, जो मांसाहारी हैं और हिंसा जिनके धर्म का अंग मान ली गई है, उनमें होने वाले हिंसक ताण्डव को देखकर आज भी दिल दहल उठता है। मुस्लिम राष्ट्रों में आज मनुष्य के जीवन का मूल्य गाजर और मूली से अधिक नहीं रह गया है। केवल व्यक्तिगत हितों के लिए ही धर्म और राजनीति के नाम पर वहाँ जो कुछ हो रहा है, वह हम सभी जानते हैं। यदि हम यह मानते हैं कि मानव-जीवन से क्रूरता समाप्त हो और कोमल गुणों का विकास हो, तो हमें उन कारणों को भी दूर करना होगा, जिनसे जीवन में क्रूरता आती हैं। मांसाहार और क्रूरता पर्यायवाची हैं - यदि दया, करूणा, श्रावकधर्म और उसकी प्रासंगिता : 12 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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