Book Title: Shilki Nav Badh Author(s): Shreechand Rampuriya, Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha View full book textPage 6
________________ [ घ] सर्प-दंशित व्यक्ति की कथा (गा०१२% 3 E जहर के स्मरण से मृत्यु की भाँति भुक्त कामभोगों का स्मरण करने से शील-नाश (गा० १३), कामभोगों के स्मरण से मन में शंका, कांक्षा, विचिकित्सा आदि की उत्पत्ति और व्रत-नाश (गा० १४) । उपसंहार (गा० १५)। पृष्ठ ४२-४४. टिप्पणियाँ माया दादागासातमीमा .. सातवीं बाड़ में सरस आहार-वर्जन (दोहा १); घृतादि से परिपूर्ण गरिष्ठ आहार से धातु-उद्दीपन और विकार की वृद्धि (दो० २); खट्ट, नमकीन, चरपरे आहार से जिह्वा पर वश न होने का कथन और परिणामतः ब्रह्मचर्य का नाश (दो० ३-४); ब्रह्मचारी नित्यप्रति सरस आहार न करे (गाथा १); निरोगी के सरस आहार के परिणमन से विकार की वृद्धि और ब्रह्मचर्य व्रत का नाश (गा० २-३); ढूंस-ठूस कर सरस आहार करने से व्रत-भङ्गः दोनों लोकों का नाश, रोग-शोक की प्राप्ति (गा० ४); अस्वस्थ शरीर में अधिक आहार से अजीर्ण आदि रोग और मृत्यु (गा० ५-७); . . नित्यप्रति सरस आहार का ग्रहण करनेवाला 'उत्तराध्ययन' के आधार पर पापी श्रमण (गा. ८); भूदेव ब्राह्मण की कथा (गा०६); मंगू आचार्य की कथा (गा० १०); . या राजर्षि शैलक की कथा (गा०-११); नाम: कुण्डरीक की कथा (गा० १२); इसी प्रकार सरस आहार से अनेक व्यक्तियों के व्रत-नाश का कथन (गा० १३) ; . सन्निपात के रोगी को दिये हुए दूध-मिश्री की भांति सरस आहार से विकार की वृद्धि (गा० १४); शील-व्रत के शुद्ध पालन के लिये ब्रह्मचारी के लिए नित्य सरस आहार का वर्जन आवश्यक (गा० १५); 5 की आठवीं बाड़ के कथन की प्रतिज्ञा (गा० १६)। टिप्पणियां तक कि मिला ४०-५१ -ढाल : (दहा ४: गाथा ४०): आठमी बोड ५२-५७ टूंस-ठूस कर आहार करने का निषेध और उससे हानि (दोहा) कि मास समाधि माघ अधिक आहार से प्रमाद, निद्रा, आलस्य आदि की उत्पत्ति (दो० २); विषय-वासना की वृद्धि और पेट का फटने लग जाना : हांडी और धान का उदाहरण (दो० ३); अधिक आहार के दुर्गुणों का वर्णन करने की प्रतिज्ञा (दो० ४); .. यवावस्था में अधिक आहार करने से विषय-विकार की वृद्धि, स्त्री का अच्छा लगना, शीलव्रत-पालन में शंका, कांक्षा आदि दोषों की उत्पत्ति (गाथा १-७); ग्रहीत आहार के न पचने पर पेट फटने लगना, अजीर्ण, पेट में जलन, खराब डकार, मरोड़, दस्त, पेशाब बंद होना, अतिसार, श्वास, खाँसी, आँख-कान में वेदना आदि अनेक रोगों की उत्पत्ति (गा० ८-२५); असत्य भाषण, चिढ़ना आदि अवगुणों की वृद्धि, रोगों का आक्रमण, अकाम मृत्यु तथा भवभ्रमण (गा० २६-३५);. कुण्डरीक की कथा (गा० ३६); TE T TE अधिक भोजन से पेट का फटने लग जाना (गा० ३७); ampोको ऊनोदरी में अनेक गुण, ऊनोदरी एक उत्तम तप (गा० ३८-३९); ASEA R T Scanned by CamScannerPage Navigation
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