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आसीद (1) तोरणाचार्यः कोण्डकुंदान्वयोद्भवः । स चैतद्विषये श्रीमान् शाल्मलीग्राममाश्रितः ॥ निराकृततमोऽरातिः स्थापयन् सत्पथे जनान् । स्वतेजोद्योतितक्षौणिश्चण्डार्चिरिव यो बभौ ॥ तस्याभूत्पुष्पनंदी तु शिष्यो विद्वान् गणाग्रणीः ।
तच्छिष्यश्च प्रभाचंद्रस्तस्येयं वसतिः कृता ॥ इन दोनों लेखोंका अभिप्राय यह है कि कोण्डकोन्दान्वयके तोरणाचार्य नामके मुनि इस देशमें शाल्मली नामक ग्राममें आकर रहे। उनके शिष्य पुष्पनंदि और पुष्पनन्दिके शिष्य प्रभाचन्द्र हुए।
पाठक महोदयका कथन है कि पिछला ताम्रपत्र जब शक संवत् ७१९ का है तो प्रभाचन्द्रके दादा-गुरु तोरणाचार्य शक संवत् ६०० के लगभग रहे होंगे और तोरणाचार्य कुन्दकुन्दान्वयमें हुए ह-अतएव कुन्दकुन्दका समय उनसे १५० वर्ष पूर्व अर्थात् शक संवत् ४५० लगभग मान लेने में कोई हानि नहीं है।
चालुक्यवंशी कीर्तिवर्म महाराजने बादामी नगरमें शक संवत् ५०० में प्राचीन कदम्बवंशका नाश किया था और इसलिए इससे लगभग ५० वर्ष पूर्व कदम्बवंशी महाराज शिवमृगेशवर्म राज्य करते थे ऐसा निश्चित होता है। पंचास्तिकायके कनड़ी-टीकाकार बालचन्द्र और संस्कृत-टीकाकार जयसेनाचार्यने लिखा है कि यह ग्रन्थ आचार्य कुन्दकुन्दने शिवकुमार महाराजके प्रतिबोधके लिए रचा था और ये शिवकुमार शिवमृगेशवर्म ही जान पड़ते हैं। अतएव भगवकुन्दकुन्दका समय शक संवत् ४५० (वि० ५८५) ही सिद्ध होता है।
परन्तु हमारी समझमें भगवत्कुन्दकुन्द इतने पीछेके आचार्य नहीं हैं। जब तक शिवकुमार और शिवमृगेशवर्मा के एक होनेके एक दो पुष्ट प्रमाण न दिये जावें तब तक इस समयको ठीक मान लेनेकी इच्छा नहीं होती। तोरणाचार्य कुन्दकुन्दके अन्वयमें थे, अतएव यह नहीं कहा जा सकता कि वे उनके १५० वर्ष बाद ही हुए होंगे। तीनसौ चारसौ वर्ष या इससे भी अधिक पहले हो सकते हैं। __इस भूमिकाका कंपोज हो चुकने पर हमें मालम हुआ कि पंचास्तिकायके अंग्रेजी टीकाकार प्रो० ए. चक्रवर्ती नायनार एम० ए०, एल० टी०, ने भगवत्कुन्दकुन्दके समयके सम्बन्धमें एक विस्तृत लेख लिखा है। उसमें उन्होंने
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