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भूमिका ।
इस संग्रहमें भगवत्कुन्दकुन्दाचार्य के षट्प्राभृत ( दर्शन, चारित्र, सूत्र, बोध, भाव और मोक्ष प्राभूत), लिंगप्राभूत, शीलप्राभूत, रयणसार,
और बारह अणुवेक्खा ये पाँच ग्रन्थ प्रकाशित किये जाते हैं। समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय और नियमसार ये चार ग्रन्थ पहले कई स्थानोंसे प्रकाशित हो चुके हैं । अभी तक कुन्दकुन्द स्वामीके बनाये हुए ये नौ ही ग्रन्थ उपलब्ध हुए हैं।
इनमेंसे षट्प्राभूत सटीक प्रकाशित किया जाता है और शेष ४ संस्कृतच्छायासहित। इन पिछले ग्रन्थोंकी कोई टीका अभीतक देखने सुनने में नहीं आई।
भगवत्कुन्दकुन्द । दिगम्बर जैन-सम्प्रदायमें आचार्य कुन्दकुन्द सबसे प्रसिद्ध और सबसे अधिक पूज्य आचार्य गिने जाते हैं। पिछले अधिकांश आचार्योंने आपको उन्हीं के अन्वय या आम्नायका बतलाया है। उनकी रचना जैनसाहित्य भरमें अपनी तुलना नहीं रखती।
अबसे लगभग ६ वर्ष पहले हम उनके सम्बन्धमें एक विस्तृत लेख प्रकाशित कर चुके हैं। वे द्रविड़ देशके 'कोण्डकुण्ड' नामक स्थानके रहनेवाले थे और इस कारण 'कोण्डकुण्ड ' नामसे प्रसिद्ध थे। 'कोण्डकुण्ड 'का ही श्रुतिमधुर संस्कृतरूप 'कुन्दकुन्द' हो गया है। 'एलाचार्य के नामसे भी ये प्रसिद्ध थे। तामिल भाषाके सुप्रसिद्ध महाकाव्य 'कुरल' के विषयमें महाराजा कालेज विजयानगरमके इतिहासाध्यापक श्रीयुत एम. ए. रामस्वामी आयंगरने लिखा है कि " जैनियोंके मतसे उक्त ग्रन्थ 'एलाचार्य ' नामक जैनाचार्यकी रचना है और तामिल काव्य 'नीलकेशी'के टीकाकार समय दिवाकर नामक जैनमुनि कुरलको
* देखो जैनहितैषी भाग १०, अंक ६-७ ।
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