Book Title: Shatprabhutadi Sangraha Author(s): Kundkundacharya, Pannalal Soni Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala SamitiPage 11
________________ श्रुतसागरसूरिके भी अनेक शिष्य रहे होंगे । इसी ग्रन्थमालाके तत्त्वानुशासनादिसंग्रहमें इनके एक श्रीचन्द्र नामक शिष्यकी रची हुई वैराग्यमणिमाला प्रकाशित हुई है। आराधनाकथाकोश, नेमिपुराण, आदि अनेक ग्रन्थोंके कती ब्रह्मचारी नेमिदत्तने भी-जो मल्लिभूषणके शिष्य थे-श्रुतसागरको गुरुभावनासे स्मरण किया है * । नेमिदत्तने भी मल्लिभूषणकी वही गुरुपरम्परा दी है, जो श्रुतसागरके ग्रन्थोंमें मिलती है। उन्होंने सिंहनन्दिका भी उल्लेख किया है । श्रुतसागरका अभी तक टीकाग्रंथों के अतिरिक्त कोई स्वतंत्र ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हुआ है। उनके बनाये हुए ग्रन्थोंका परिचय आगे दिया जाता है: १ यशस्तिलकचन्द्रिका। यह निर्णयसागर प्रेसकी 'काव्यमाला 'में प्रकाशित हो चुकी है। यह टीका अपूर्ण है-५ वें आश्वासके कुछ अंशकी और छठे आश्वासकी टीका नहीं है । जान पड़ता है, यही उनकी अन्तिम रचना है । यह टीका अनेक स्थानों के ग्रन्थभण्डारोंमें मिलती है, परन्तु सर्वत्र ही अपूर्ण है। २ महाभिषेकटीका। सुप्रसिद्ध पंडित आशाधरजीके बनाये हुए नित्यमहोद्योत या महाभिषक नामक ग्रन्थकी यह टीका है। इसका अन्तिम अंश ऊपर उद्धृत किया जा चुका है। उससे मालूम होता है कि उस समय श्रुतसागर देशव्रती या ब्रह्मचारी थे, सूरि या आचार्य नहीं हुए थे। ३ तत्वार्थटीका। यह श्रुतसागरी टीकाके नामसे प्रसिद्ध है । इस लेखके लिखते समय हमें इसकी प्राप्ति नहीं हो सकी । परन्तु यह दुष्प्राप्य नहीं हैइसका भाषानुवाद भी हो चुका है।। ४ तत्त्वत्रयप्रकाशिका । आचार्य शुभचन्द्रकृत ज्ञानार्णवके अन्तर्गत जो गद्यभाग है, यह उसीकी टीका है । इसकी एक प्रति स्व० सेठ माणिकचन्द्रजीके ग्रंथसंग्रहमें मौजूद है। उसकी प्रशस्ति देखिए: * जीयान्मे सूरिवर्यो व्रतनिचयलसत्पुण्ययुक्तः श्रुताब्धिः ॥ ४ तेषां पादपयोज युग्मकृपया.......... इत्यादि ।। -आराधनाकथाकोशप्रशस्तिः । * ग्रन्थ नं.३। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 494