Book Title: Shatpanchashitika Sangrahini
Author(s): Dharmkirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 9
________________ जून २००८ १५-केवलज्ञानस्थानम् उसभस्स पुरिमताले वीरस्स जुवालीयानईतीरे । सेसाण केवलाइं जेसुज्जाणेसु पव्वईया ||२९|| केवलज्ञान केवइ ठामि ऊपनो ते कहइ छइ. ऋषभनइ पुरिमतालनगरइ ऊपनो. श्रीवीरनइ ऋजूवालिकानदीनइं कांठइ. शेष २२ तीर्थंकरनइ केवलज्ञान जे उद्याननइ विषइ दीक्षा लीधी तिहां ऊपनो केवल. ॥२९॥ १६-केवलज्ञानतप अट्ठमभत्तंमि य पासो २३ सह १ मल्ली १९ रिट्ठनेमीणं च २२ । वसुपुज्जस्स १२ चउत्थेणं छट्ठभत्तेणं सेसाणं ॥३०॥ १६-केवलज्ञान ऊपजतां केतलो तप हुँतो. अट्ठमभक्ततप पार्श्वनाथनइ, ऋषभनइ, मल्लिनइ, अरिट्ठनेमिनइ तथा वासुपूज्यनइ चतुर्थभक्ततपइ केवल ऊपनो शेष १९ तीर्थंकरनइ छट्ठभक्ततपइ केवल ऊपनो. ॥३०|| १७-साधुसंख्या चुलसीइं च सहसा(स्सा) १ एगं च २ दुवे य ३ तिन्नि लक्खाई ४ । तिन्नि य वीसहियाई ५ तीसहियाई च तिन्नेव ६ ॥३१।। १७-२४नी साधुसंख्या कहइ छइ. चउरासी हजार साधु श्रीऋषभदेव नइ. एक लाख २ नइ. बि लाख ३ नइ. त्रिणि लाख साधु ४ नइ. त्रिणि लाख ऊपरि वीस हजार साधु पांचमानइ. तीस हजार सहित त्रिणिलाख छट्ठानइ. ॥३१॥ तिन्नि य ७ अढा(ड्ढा)इज्जा ८ दुवे य ९ एगं च सयसहसा(स्सा)इं १० । चुलसीइं च सहसा(स्सा) ११ बिसत्तरि १२ अट्ठस४ि च १३ ॥३२॥ तीन लाख साधु [७मानइ] अढाइ लाख साधु ८ मानइ, बि लाख साधु ९ मानइ, एक लाख साधु दशमानइ, चउरासी हजार साधु इग्यारमानइ, ७२ हजार साधु, अडसठहजार साधु. ॥३२॥ छावढेि १४ चउसट्टि १५ बावढेि १६ सर्द्वि १७ मे(चे)व पन्नासं १८ । चत्ता १९ तीसा २० वीसा २१ अट्ठारस २२ सोलसहसा य २३ ।। ३३|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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