Book Title: Shatpanchashitika Sangrahini
Author(s): Dharmkirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ जून २००८ दस हजार संघात श्रीऋषभदेव संथारो कीधो. शेष १२ तीर्थंकर ऐकेका सहस्र साथि सीधा. आउषादि सहू नाम कह्या (न कह्या ?) जे ते प्रथमानुयोग सूत्रथी जाणिवा. ॥६०॥ २५. जिनानाम् अंतरकालप्रमाणम् पन्नासा लखेहि कोडीणं सागराणं उसभाओ । उप्पनो अजियजिणो तईओ तीसाइ लक्खेहिं ॥६१|| २५. सर्वजिनना आंतरा कहइ छइ. पचास लाख क्रोड सागरनइ आंतरइ श्रीऋषभथी उपना अजितनाथ. बीजा थकी त्रीजो त्रीस लाख] कोडि सागर हुआ. जिणवसभसंभवाओ दसहिओ लखेहि अयरकोडीणं । अभिनंदणाओ भगवं एवईकालेण उप्पन्नो ॥६२॥ जिनमध्ये वृषभसमान संभव थकी दश लाख कोडि सागरनइ अंतरइ हूया श्रीअभिनंदन भगवंत ४ एतति कालिं ऊपना ॥६२॥ अभिनंदणाओ सुमई नवहि उ लक्खेहिं अयरकोडीणं । उप्पन्नो सुहपुत्तो सुप्पभनामस्स वुच्छामि ॥६३।। अभिनंदन थकी सुमतिनाथ नव लाख कोडि सागरनइ अंतरइ ऊपनो. शुभपुण्यना धणी पद्मप्रभनाम जिननओ कहू. ॥६३।। नउई य सहसे(स्से)हिं कोडीणं सागराणं पुन्नाणं । सुमईजिणाओ पउमो एवईकालेण उप्पन्नो ॥६४|| नेऊ हजार कोडिसागरइ जाते हुतई संपूर्ण सुमतिनाथ थकी पद्मप्रभु एतलइकालिं ऊपनो. ॥६॥ पउमपहनामाओ नवहिं सहसेहि अयरकोडीणं । कालेणेवइएणं सुवासनामो समुप्पनो ॥६५।। पद्मप्रभ छट्ठा जिन थकी नव हजार कोडी सागर एतलइ काल जाता सुपार्श्वनामा सातमा तीर्थंकर ऊपना. ॥६५।। कोडीसएहिं नवहिं सुपासनामो जिणो समुप्पन्नो । चंदप्पभो पभाए पभासयंतो य तिलुक्कं ॥६६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18