Book Title: Shatpadi Prashnottar Paddhati me Pratipadit Jainachar
Author(s): Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ शतपदी प्रश्नोत्तर पद्धति में प्रतिपादित जैनाचार इसके अतिरिक्त इन्होंने निम्न बातों पर भी अपने मंतव्य लिखे हैं १. जिनाज्ञा की प्रमाणता २. आचरणा वैचित्र्य विचार ३ अशठाचरण के लक्षण तथा दृष्टान्त ४. हरिभद्रसूरि तथा अभयदेवसूरि की आचरणा विषयक अपने विचार ५. मुनिचन्द्रसूरि तथा देवसूरि की आचरणा विषयक अपने मंतव्य ६. उपदेशमाला विषयक अपने विचार ७. खरतरगच्छमत मीमांसा ८. दिगम्बरमत समीक्षा ९. अंचलगच्छ तथा बृहद्गच्छ की उत्पत्ति का इतिहास । इन सब बातों का आ० महेन्द्रसिंहसूरि ने तुलनात्मक एवं तात्त्विक रूप से विवेचन किया है | आगम, नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य एवं टीकाओं का तथा प्रकरण ग्रन्थों का गहराई के साथ अध्ययन कर अपनी मान्यताओं को शास्त्र प्रमाणों से सिद्ध किया है । शतपदी में करीब सौ ग्रन्थों के नाम और उनके उद्धरण प्रस्तुत किये हैं । इन्होंने जिन ग्रन्थों के उद्धरण दिये हैं उनमें से कुछ ग्रन्थ शतपदीकार के समय मौजूद थे किन्तु वर्तमान में अनुपलब्ध हैं जैसे १. प्रतिष्ठाकल्प ( हरिभद्रसूरि ) २. प्रतिष्ठाकल्प ( समुद्राचार्य ) ३. सम्यक्त्वकुलक ( वर्द्धमानाचार्य ) ४. आवश्यकमीमांसा ( चिरन्तनाचार्य ) ५. दर्शनसत्तरि ( वर्द्धमानाचार्य ) ६. आवश्यक टिप्पणक ७. योगसंग्रह ८. योगसंग्रहचूर्णि ९. चिरन्तन कल्पवल्ली ( ४४००० हजार श्लोक प्रमाण ग्रन्थ ) १०. यापनीयतंत्र ११. छेदसूत्र की हुण्डियाँ आदि १२. जीवाभिगमसूत्रचूर्णि उपलब्ध किन्तु अप्रकाशित ग्रन्थ ये हैं १. व्यवहारसूत्रचूर्णि २. पंचकल्पचूर्णि ३. महानिशीथसूत्र ( जर्मनी में प्रकाशित ) ४. पाक्षिक ५. कल्पसामान्यचूर्णि ३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12