Book Title: Shatpadi Prashnottar Paddhati me Pratipadit Jainachar
Author(s): Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf

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Page 12
________________ 42 रूपेन्द्र कुमार पगारिया भी थे / इन चार आचार्यों से वि० सं० 1149 में पूनमिया गच्छ की चार शाखाएँ निकलीं। मुनिचन्द्रसूरि से देवसूरि की परम्परा चली / श्री बुद्धिसागरसूरि से श्रीमालीगच्छ निकला तथा श्री मलयचन्द्रसूरि से आशापल्ली गच्छ चला। श्री जयचन्द्रसूरि के शिष्य विजयचन्द्रोपाध्याय ने अपने मामा शीलगुणसूरि के साथ पूनमिया गच्छ स्वीकार किया। उन्होंने आगम ग्रन्थों का सविशेष अध्ययन किया। आ० जयचन्द्रसूरि इन्हें गच्छाचार्य के पद पर अधिष्ठित करना चाहते थे। उस समय उनके गच्छ में मालारोपण आदि अनेक शास्त्र विरुद्ध परम्पराएँ प्रचलित थीं। उन्हें शास्त्र विरुद्ध प्रवृत्तियाँ अच्छी नहीं लगती थीं, अतः उन्होंने आचार्य पद लेने से इनकार कर दिया। तब उन्हें उपाध्याय पद से विभूषित किया गया। मुनिचन्द्रसूरि एवं विजयचन्द्रोपाध्याय एक ही गुरु के शिष्य थे। विजयचन्द्रोपाध्याय के शिष्य यशचन्द्रगणि थे। मुनिचन्द्रसूरि के सांभोगिक रामदेव सूरि ने पावागढ़ के समीप मन्दारपुर में भगवान् पार्श्वनाथ के मन्दिर में उन्हें श्रीचन्द्र आदि अधिष्ठित किया और उनका नाम जयसिंह सरि रखा। वि० सं० 1169 विजयचन्द्रोपाध्याय ने विधिपक्ष की स्थापना की। विजयचन्द्रोपाध्याय का जन्म सं० 1139, दीक्षा सं० 1142, स्वर्गवास 1226 में हुआ था। श्री जयसिंहसूरि का जन्म 1179 में, दीक्षा 1197 में, आचार्यपद 1202 मैं, स्वर्गवास 1258 में / प्रथम शतपदी के कर्ता धर्मघोषसुरि का जन्म 1208 में, दीक्षा 1216 में, आचार्यपद 1234 में, स्वर्गवास 1268 में हुआ। इस प्रकार शतपदिका प्रश्नोत्तर पद्धति ग्रन्थ धार्मिक सामाजिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से बड़ा महत्व का है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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