Book Title: Shatpadi Prashnottar Paddhati me Pratipadit Jainachar
Author(s): Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf

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Page 1
________________ शतपदी प्रश्नोत्तर पद्धति में प्रतिपादित जैनाचार रूपेन्द्र कुमार पगारिया शतपदी प्रश्नोत्तर पद्धति जैन श्वेताम्बर अंचलगच्छ की समाचारी एवं उनके द्वारा मान्य सिद्धान्तों को आगमानुसार सिद्ध करनेवाला प्राचीन ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ का रचना समय वि० सं० १२९४ है। यह ग्रन्थ अब तक अप्रकाशित है। इसकी ताड़पत्र पर लिखी हुई चार प्रतियाँ एवं कागज पर लिखी गई कई प्रतियाँ भण्डारों में मिलती हैं। पाटण जैन ज्ञान भंडार की दो ताडपत्रीय प्रतियों में एक संघवी पाडे की ताडपत्रीय प्रति का लेखन संवत् १३०६ है। अन्य प्रतियों में लेखन समय नहीं है। मैंने इस ग्रन्थ का संशोधन, सम्पादन इसी प्रति से किया है। इस ग्रन्थ की खास विशेषता यह है कि इसके तीन संस्करण हुए हैं। प्रथम संस्करण बृहत् शतपदिका के नाम से प्रसिद्ध है। इस ग्रन्थ के कर्ता आ० धर्मघोषसूरि थे। इसका रचना काल वि० सं० १२६३ है। इसकी भाषा प्राकृत थी। वर्तमान में यह संस्करण अनुपलब्ध है। __ इसका दूसरा संस्करण आ० महेन्द्रसिंहसूरि ने किया। आ० महेन्द्रसिंहसूरि आ० धर्मघोषसूरि के पट्टधर थे। उन्होंने अपने पूर्ववर्ती आचार्य के द्वारा बनाया हुआ यह ग्रन्थ देखा। उन्हें लगा कि अंचलगच्छ की समाचारी एवं मान्य सिद्धान्तों को शास्त्रप्रमाणों से सिद्ध करनेवाला तथा अन्य गच्छों की समाचारी को तुलनात्मक ढंग से प्रस्तुत करनेवाला यह अनुपम ग्रन्थ है। किन्तु इसकी भाषा प्राकृत है एवं विषय विवेचन भी अति गम्भीर है अतः इसे भाव और भाषा की दृष्टि से सरल बनाना चाहिए । यही सोचकर उन्होंने आ० धर्मघोषसूरि कृत शतपदी को नूतन शैली में तथा सरल संस्कृत भाषा में तैयार किया है। उन्होंने धर्मघोष कृत शतपदी के सभी प्रश्नों को अपने ग्रन्थ में समाविष्ट किया और जो प्रश्न और उत्तर विस्तृत थे उन्हें संक्षिप्त किये और जो संक्षिप्त किन्तु उपयोगी अंश थे, उसका विस्तार कर ५२०० श्लोक प्रमाण इस ग्रन्थ की प्रश्नोत्तर पद्धति से तैयार किया। आ० महेन्द्रसिंहसूरि अपने समय के उच्चकोटि के विद्वान थे। इन्हें कई आगम कंठस्थ थे। वे अपने शिष्यों को बिना पुस्तक की सहायता से ही पढ़ाते थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई ग्रन्थों की रचना की थी। गुरुगुणषट्त्रिंशिका, अष्टोत्तरितीर्थमाला, स्वोपज्ञवृत्तिविचारसप्ततिका, चतुःशरण तथा आतुरप्रत्याख्यानावचूरि, शतपदी, मनस्थिरीकरणप्रकरण आदि ग्रन्थ उनकी ज्ञान गरिमा को प्रकट कर रहे हैं। _शतपदिका का तीसरा संस्करण लघुशतपदिका के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें ५२ प्रश्न बृहत् शतपदी से लिये हैं। अपनी ओर से सात नये प्रश्नों का समावेश कर १५७० श्लोक प्रमाण में वि० सं० १४५० में महेन्द्रप्रभसूरि के पट्टधर श्री मेरुतुङ्गसूरि ने लघुशतपदिका के नाम से इस की रचना की है । इसमें सत्रहप्रकारीपूजाविचार, पुस्तकपूजाविचार,आरती-मंगलदीपविचार, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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