Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 2 3
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 5
________________ प्रस्तावना — [ तृतीय स्तरकाम्तर्गत विषय ] उतीय स्तनक में १ से १७ कारिका तक ईश्वरक स्ववाद को समालोचना की गयी है। इस में पूर्व भाग में साक्ष्यमान-पासजलमत मोर ग्याय-बशेविक वाविषों की और से विस्तृत पूर्वपक्ष में विशेषत: उज्यमाचार्य की कुसुमाञ्जलि कारिका का विरूपण करने के बाद उत्तर भाग में उन सभी का सविता प्रतिकार किया गया है। विशेषतः यो सपा में पक्ष-प्रतिपक्ष रुप मध्यन्याय की ली को परम सोमा प्राप्त हुई है। जन दर्शन में कतत्वबाव औपचारिक या वास्तविक रीति से किस प्रकार संगत हो सकता है या भी अन्त में विखाया गया है। विषयानुक्रमणिका में विस्तार से प्रमगत सभी विषयों का निषा किये जाने से यहां विस्तार महीं किया है। कारिमा से सत्यवोमिक्षातों के प्रर्वपक्षहप में निवर्शन किया है। म.पी कारिका मेसात्यमा के प्रतिकार का आरम्भ है और उसमें प्रतिविम्बवाव पर गहन बर्षा मही प्राप्त होती है। कारिका में साल्पमत में जिस रीसे से जितमा संगनिरूपण है उसके प्रति पंगुलीनिधी किया या है। श्रत में मृत और श्रम का परम्पर marपावि संबंध की संगति पर विचार किया गया है। प्रकृतिवार को सायता के हेतु देकर मायामत का उपसंहार किया है। फुलपयकार और प्याख्याकार वोनों महषि का परिचम प्रथमस्तक में विपासा, ता. तिरिक्त उनके बनाये पन्धों का भी वहा परिषय दिया हया सलिये यहां अधिक विस्तार म कर प्राम्स में नहीं गुमै माछा स्यात बरमा चित है-जिज्ञासु अधिकारी मुमुक्ष वर्ग इस प्राय का प्राययम कर मुक्ति मंशिरको शीघ्र प्राप्त करने का सामध्य प्राप्त करें। मुनि जयसूवर विजय श्रीषालनगर, मुबई-६ जनयामासनम

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