Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 2 3
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 10
________________ पृष्ठांक विषय ६४ प्रलय के अम्बीकार से ईश्वर असिद्धि पूर्व की व्याि महोरात्र में १७ ६५ कित्ष की व्यात्रि शंका में सर्फर $1 ६६ एकनाथ समस्त फर्म का चिनिरोध मश E [सद की अमिद्धि से 11 सर्ग के प्रारम्भ में व्यवहार की मि ६८ मजाकिय ईश्वर शिक्षा-पुर्वप ६६ ईश्वर के शरीर महल का असम्म प्रतरप ७० ईश्वर अश्वैश से शरी ७२ आवेश पवार्थ समीक्षा उत्तरपक्ष , ईश्वराधेश और भूतावेश समान नहीं है। ७१ मान्य के कोन विकास से भूला देश ७२ नैयायिकमान्य कार्यकारणभाव में गौरव ht ਵਿਸਥਾਰ ਸ निकथन श्री व्ययंता शरीर प्रयत्न कार्यकारणमा अशक्य भष्यष में कियाजनक प्रयत्न इच्छानियत है ७१ योगिजन के कायल की प 31 , आवेश से प्रवृत्ति, वादिना व्यर्थ ७४ लोकप्रसिमानार्थं 75 ७५ 3. ד सीधेकर ब्रह्मादिदेवतशरीर में चेष्टा पर प्रभ विष्ठा की उ१पति काय वरिष्ठविरोध की आपत्ति नाचार्य के कथन की अमारता संकेत आदि सब मायाजाल है युग की आदि में व्यवहार " प्रस्थादि प्रमाणों । व्यर्थ उपन्यास जयप्रस के प्रति प्रमा की का खंडन अपेक्षायुद्धि से त्यिादिव्यवहार की उपपति ० ईश्वर का कथंचि नयर्थन १ आता पावन द्वारा ईश्वर रेव पर चिन्तामणि जैसे ईश्वरमति से सिद्धि निर्थंक प्रथाम बाबाविलोपन द्वारा भर्तृ ईश्वर भक्ति में वृद्धि के लिये कर्तृत्वोपदेश ६४ भारमा ही परमात्मा होने से साक्षात स्व | पृष्ठांक विषय ८५ निःस्पृहाकार धुतमात्री नहीं होते दोनी से शास्त्रकार के " युक्ति और भाग अभिप्रायका अन्ज ۱ [ केोधका उपाय वर्षानुसंधान ८० ईश्वर का का रडार सांधमतान प्रारम्भ ७न के सिद्धान्त ७७ पुरुष और प्रकृति के प्रमाण सहकार्य में सुप १०और कार्य सम्बन्ध की अनुपि ३१ सहकार्यबाव में नियत शक्ति का सम्भव ६२ मत से चैतन्याषच्छेद और दवासादि का नियमन " बुद्धिगत कालादि धर्मो का निरूपण १३ पुरुष रद्धि का सात्विक भे 1, पुरुष-विषयाकार का बुद्धि सम्बन्ध ४. बुद्धि से कार की पति -मनुवचन # 11 अहंकार से मां लक्ष्यों की उत्पति २६ शन्द्रियकर्मेन्द्रिय-समयेन्द्रिय भाषि 'बाघ है यह स्थाप्तिक प्रमीति की अहंकार से उपपति का विवरण प्रकृति मावि स के चार वर्ग प्रधानमद्दतुकार इश्यि समान्य भूत फा सांस्यम में आत्म शून्य है ९८ युक्ति से समय की आलोचना ३६ प्रकृति - एका नित्यसका खंडन १०० प्रकृति की निश्यता के बचाव की शंका १०१ जननाजननोभयस्यभाव मे अन्योन्याश्रय १०२ मकवि को मह का उपादान मानने में मनित्यस्त्र की भवचि १०३ दि कार्य पृथ्वी आदि के परिणाम मात्र से जन्म नहीं

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