Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 2 3
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ भ्याक टीका और हिन्दी विवेचन | नन्दि स्वगृहवात्तमात्रम् अप्रत्यक्षे पापादौ तत्प्रामाण्यग्राह कमाना भावादित्याशङ्का यामाह मूलम् - चन्द्र सूर्योपरा गावस्ततः संवाददर्शमात् 1 तस्याप्रत्यक्षेऽपि पापादौ न प्रामाण्यं न युज्यते || ३ || I + नतःतद्भोधितात् पन्द्रसूर्यपरागादेरर्थात् तमाश्रित्य इनि म्यलोपे पञ्चमी, संवाददर्शनाद् = अभिवादितिजनकत्वनिश्वयात् तस्य शब्दस्य, अप्रत्यक्षेऽपि श्रोत्रप्रत्यक्षेपि पापादौ प्रामाण्यं तद्वद्विशेष्यकन्ये सति तत्प्रकारकज्ञानजनकत्वम्, न युज्यत इनिन निधीयत इति न किन्तु निश्चीयत एवेत्यर्थः ||३|| , [2 यदि नाम क्यविद् दृष्टः संवावोऽन्यत्र वस्तुनि | तद्भावस्तस्य तच धा कथं समवसीयते ! ॥ ४ ॥ P = परमभिप्रायमाह यदि नाम क्वचित् चन्द्रोपगगादायर्थे मंगादो, सदा तदभि घायकरात्रयस्य प्रामाण्यं सिध्यतु, अन्यत्रः पापादौ वस्तुनि लङ्गावः संवादभावः त पापाद्यभिधायकवाक्यस्य तस्वं वा प्रमाणत्वं वा कथं समयमीयते ! प्रामाण्यव्याप्यसंवादित्वाभावात् पापाद्यभिधायकवाच्ये प्रामाण्यनिश्रयो दुर्घटइति समुदायार्थः ||४|| क्योंकि प्रारूप से मित्थ है। एकत्र भरतायि क्षेत्र में उसके विकाल में भी अपरत्र महाविदेह क्षेत्र में वह अविच्छिन्न रहता है। वह अनामत भी नहीं है क्योंकि जिसने समस्त अप कर खाला है ऐसे भगवान ने उसके अर्थों का प्रतिपान किया है || २ || का [ संवाद से परोक्ष वस्तु में भी आगम का प्रामाण्य ] "अदृष्ट के अस्तित्व में आगम प्रमाण है' मे सत्र पूर्व कारिका में कही गयी बातें केवल अपने घर की बाते हैं परीक्षा करने पर उनकी वास्तविकता नहीं सिद्ध हो सकती, क्योंकि पाप आणि अष्ट प्रत्यक्षसिद्ध नहीं अतः उम में आगम प्रमाणन है। इस बात में कोई प्रमाण नहीं हो सकता इस शङ्कर का प्रस्तुत तीसरी कारिका में समाधान किया गया है। कारिका का अर्थ इस प्रकार है सूर्य का प्रण आगमगम्य है और उस का संवाद प्रत्यक्ष प्रमाण से अवगम देखा जाता है, तो जैसे प्रत्यक्षदृश्य चन्द्रग्रहण आणि अर्थ में आगम प्रमाण है इसे ही वह श्रोता को प्रत्यक्ष हृदय न मेवाले पाप आदि अष्ट में भी प्रमाण हो सकता है। इसलिये 'अष्ट में आगम को शेय सप्रकारकज्ञानरूप प्रपर की जनता नहीं है। यह बात सलंगल नहीं हो सकती, किन्तु आगम अष्ट में भी प्रमाण का जनक है।' यही युक्तिसंगत है ॥३॥ आदिजिन कारिका में बाबी का अभिप्राय स्वव किया है, जो इस प्रकार हैअर्थों में आगम का अन्य प्रमाण से संवाद समर्थन देखा जाता है उन सब में आगम का प्रामाण्य ठीक

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 246