Book Title: Shastra Sandeshmala Part 23
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरनारएसु चत्तारि हुंति तिरिएसु जाण पंचेव । मणुयगईए वि तहा चोद्दस गुणनामधेज्जाणि ॥ १२ ॥ दोण्हं पंच उ छच्चेव दोसु एक्कम्मि होंति वा मिस्सा। सत्तुवओगा सत्तसु दो चेव य दोसु ठाणेसु ॥ १३॥ तिसु तेरस एगे दस नव जोगा होति सत्तसु गुणेसु एक्कम्मि हुंति एक्कारस, सत्त सजोगे अजोगिक्के ॥ १४ ॥ तेरस चउसु दसेगे पंचसु नव दोसु होन्ति एगारा । एगम्मि सत्त जोगा अजोगिठाणं हवइ एगं ।। १५ ।। चउपच्चइओ बन्धो पढमे उवरिमतिगे तिपच्चइओ। मीसग बीओ उवरिमदुगं च देसिक्कदेसम्मि ॥ १६॥ उवरिल्लपंचके पुण दु पच्चओ जोगपच्चओ तिण्हं । सामण्णपच्चया खलु अट्ठण्हं होन्ति कम्माणं ।। १७ ॥ पडिणीयअन्तराइयउवधाए तप्पओसनिण्हवणे । आवरणदुगं भूओ बन्धइ अच्चासणाए य ॥ १८ ॥ भूयाणुकम्पवयजोगउज्जओ खन्तिदाणगुरुभत्तो। बन्धइ भूओ सायं विवरीए बन्धए इयरं अरहन्त-सिद्ध-चेइअ-तव-सुय-गुरु-साहु-संध पडणीओ। बन्धइ दंसणमोहं अणन्तसंसारिओ जेणं ॥ २०॥ तिव्वकसाओ बहुमोहपरिणओ रागदोससंजुत्तो । बन्धइ चरित्तमोहं दुविहं पि चरित्तगुणघाई ॥ २१ ॥ मिच्छट्ठिी महारम्भपरिग्गहो तिव्वलोभनिस्सीलो । निरयाउयं निबंधइ पावमई रुद्दपरिणामो ॥ २२॥ उम्मग्गदेसओ मग्गनासओ गूढहिययमाइल्लो । सढसीलो य ससल्लो तिरियाउं बन्धए जीवो For Private And Personal Use Only

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