Book Title: Shastra Sandeshmala Part 23
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥९७ ।।
॥९८॥
॥ ९९ ॥
॥ १००॥
॥ १०१॥
सव्वुवरि वेयणीए भागो अहिगो अ कारणं किंतु । सुहदुक्खकारणत्ता ठिईविसेसेण सेसाणं छण्हं पि अणुक्कोसो पएसबंधो चउव्विहो बंधो । सेसतिगे दुविगप्पो मोहाउ य सव्वहिं चेव तीसण्हमणुक्कोसो उत्तरपयडीसु चउविहो बंधो। सेसतगे दुविगप्पो सेसासु य चउविगप्पो वि आउक्कस्स पएसस्स पंच मोहस्स सत्त ठाणाणि । सेसाणि तणुकसाओ बंधइ उक्कोसगे जोगे सुहुमनियोगाऽपज्जत्तगस्स पढमे जहण्णगे जोगे। सत्तण्हं तु जहण्णं आउगबंधे वि आउस्स सत्तर सुहुमसरागो पंचगमनियट्टि सम्मगो नवगं । अजई बितियकसाए देसजई तइयए जयइ तेरस बहुप्पएसं सम्मो मिच्छो व कुणइ पयडीओ। आहारमप्पमत्तो सेसपएसुक्कडं मिच्छो सण्णी उक्कडजोगी पज्जत्तो पयडिबंधमप्पयरो । कुणइ पएसुक्कोसं जहण्णगं जाण विवरीए घोलणजोगिअसण्णी बंधइ चउ दोण्णि अप्पमत्तो उ। पंचासंजयसम्मो भवाइ सुहुमो भवे सेसा जोगा पयडिपएसं ठिइअणुभागं कसायओ कुणइ । कालभवखित्तपेक्खो उदओ सविवागअविवागो सेढिअसंखेज्जइमे जोगट्ठाणाणि होति सव्वाणि । तेसिमसंखिज्जगुणो पयडीणं संगहो सव्वो तासिमसंखिज्जगुणा ठिईविसेसा हवंति नायव्वा । ठिइबंधज्झवसायाणिऽसंखगुणियाणि एत्तो उ
।। १०२ ॥
॥ १०३ ॥
॥ १०४॥
|| १०५ ॥
॥ १०६ ॥
॥ १०७॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 430