Book Title: Shastra Sandeshmala Part 21
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पडिसिद्धसेवणं पुण णो अववाओ फुडो अणायारो । ता वत्थाई गन्थो णो उस्सग्गो ण अववाओ उवकुणइजह सरीरं सुदुवओगं तहेव उवगरणं । जम्हा तओ मुणीणं सुए अणेगे गुणा भणिआ जइ उवहिभारगहणं इटुं दुज्झाणवज्जणणिमित्तं । तो सेयं थीगहणं मेहुणसण्णाणिरोहट्ठा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एयं विदूसगाणं वयणं मयणंधवयणमिव मोहा। अण्णह समोवहासो देहाहाराइगहणे वि रागस्स व दोसस्स व उद्दिस्स सुहासु सुहासुहया । जर पुण विसयापेक्खा कह होज्जा तो विभागो सिं नामं ठवणा दविए रागो दोसो अ भावओ चउहा । कम्मं जोगं बद्धं बज्झन्तमुदीरणोवगयं कम्मदव्वराओ णायव्वो वीससा पओगा य । संझाइकुसुंभाई दोसो दुट्टव्वणाईओ जं रागदोसकम्मं समुइण्णं जे तओ अ परिणामा । ते भावरागदोसा वुच्छमिहं णयसमोआरं कोहो माणो दोसो माया लोभो अ रागपज्जाया । संगणयमयमेयं दोसो माया वि ववहारा उज्जुसुअस्स य कोहो दोसो सेसेसु णत्थि एगन्तो । कोहो च्चिय लोहो च्चिय माणो माया य सदस्स परदव्वम्मि पवित्ती ण मोहजणिया व मोहजण्णा व । जोगकया हु पवित्ती फलकंखा रागदोसकया वत्थाइ व गन्थो मुणीण मुच्छं विणेव गहणाओ । तह देहपालणट्ठा जह आहारो तुह वि इट्ठो २ For Private And Personal Use Only ॥ १२ ॥ ॥ १३ ॥ ॥ १४ ॥ ॥ १५ ॥ ॥ १६ ॥ 11 219 11 ॥ १८ ॥ ॥ १९ ॥ 11 20 11 ॥ २१ ॥ ॥ २२ ॥ ॥ २३ ॥

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