Book Title: Shastra Sandeshmala Part 21
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
हु सा उचियपवित्ती णेव य सुपसत्थझाणहेउ त्ति । आहारो व्व अबंभं अण्णह तुह होइ णिद्दोसं आहारचितणुब्भवमेयं आहारसण्णमासज्ज । वड्ढइ अट्टज्झाणं इट्ठालाभेण मूढाणं
तत्तो माणसदुक्खं लइह जिओ कंदणाइ कुव्वंतो । लढुं इट्ठविसयं रईइ चितेइ अविओगं
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तो मोहणीज्जखयओ तब्भवदुक्खाणुबंधविरहेणं । लहs सुहं सव्वण्णू चएइ णो पुण छुहं चइउं
घाई व वेअणीयं इय जइ मोहं विणा ण दुक्खयरं । पडं पडिरूवाउ ता अण्णाओ वि पयडीउ अणुकूलं पडिकूलं च वेअणं लक्खणं सुहदुहाणं । हु एसो एगंतो अपमत्तजइसु तयभावा
अधुवाण सुहदुहाणं भोगो भोगेण कम्मबंधो अ । हु सो एगंतो अपमत्तजइसु तयभावा अण्णाणजं तु दुक्खं नाणावरणक्खएण खयमेइ । तत्तो सुहमकलंकिअकेवलनाणाऽपुहब्भूयं
सुक्खं दुक्खं वा देहगयं इंदिउब्भवं सव्वं । अण्णाणमोहकज्जे पमाणसिद्धे हु संकोए एत्तो च्चिय बहुदुक्खक्खएण तेसिं छुहाइवेअणियं । बिरसलवु व्व पर अप्पं ति भणंति समयविऊ `ण य तं कवलाजोग्गं वेअणिअं अगणिमंदयाभावा । णय दडुरज्जुकप्पं वेअणिअं हंदि सुअसिद्धं ण य केवलनाणाई छुहाइपडिबंधगं जिणिदस्स । दाहस्सिव मंताई इय जुत्तं तंतजुत्तीए
८
For Private And Personal Use Only
11 28 11
॥ ८५ ॥
॥ ८६ ॥
1169 11
1124 11
॥ ८९ ॥
॥ ९० ॥
॥ ९१ ॥
॥ ९२ ॥
॥ ९३ ॥
॥ ९४ ॥
।। ९५ ।।

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 ... 442