Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 19
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ अस्पृष्टपूर्वे तमसां समूहै-श्वारो यदि स्याद् गगने सुधांशोः / अदूषिते वर्त्मनि दुर्जनैः स्याद्, गतिस्तदा साधुजनस्य वाचाम्।। 24 // श्रव्ये खलानां नहि शास्त्रभावे, बुद्धिः परं मज्जति कूटदोषे / चञ्चूर्विहायैव हि पद्मखण्डं, सद्यः पुरीषे पतति द्विकानाम् // 25 // न प्रत्ययार्हा प्रकृतिः खलानां, न चारुरूपं समुपैति किञ्चित् / संस्कारहीनामिति तामपेक्ष्य, को वा क्रियां साधयितुं यतेत // 26 // गुणः खलस्याप्ययमण्य एव, यद्दोषचिन्तादहनाभिलीढम् / तदाऽस्य शाणे परिघृष्यमाणं, सतां वचःशस्त्रमुपैति दीप्तिम् // 27 // पीयूषसृष्टिर्न सतां स्वभावात्, संसारसिन्धावधिकाऽस्ति धातुः / दोषैकदृष्टिव्यसनात् खलानां, न कालकूटस्य परा च सृष्टिः // 28 // ग्रन्थाम्बुराशौ मथिते परीक्षा-मन्थाद्रिणा दोषविषं स्वकण्ठे। विरूपनेत्रेण धृतं खलेन, गुणग्रहश्रीः पुरुषोत्तमेन // 29 // विघृष्यमाणोऽपि खलापवादैः, प्रकाशतां याति सतां गुणौघः / उन्मृज्यमाणः किमु भस्मपुजै-र्न दर्पणो निर्मलतामुपैति // 30 // कथाऽन्यथा स्यान्न खलप्रलापै-र्या सज्जनेनानुगृहीतभावा / प्रयाति विश्वेऽर्ककृतः प्रकाशो, न घूकपूत्कारपरम्पराभिः // 31 // न दुर्जनैराकुलिता अपीह, भिन्नस्वभावाः सुजना भवन्ति। प्रपद्यते वज्रमणिर्न भेद-मयोघनैरप्युपभिद्यमानः // 32 // निगूढभावान् विशदीकरोति, तमः समस्त परिसंवृणोति। दोषोद्भवेऽप्यन्यगुणप्रदर्शि, धाम प्रदीपस्य सतां च वृत्तम् // 33 // नीचोऽपि नूनं सदनुग्रहेण, क्षति विहायाभ्युपयाति कीर्तिम् / न निम्नगाऽपि प्रथिता सुराणां, नदीति किं शंकरमौलिवासात्॥ 34 // सूर्योदये ध्वान्तभरादिवोच्च-स्तापादिवेन्दोः किरणप्रचारे। अनुग्रहे साधुजनस्य भीति-र्न काऽपि नो दुर्जनदोषवादात् // 35 //

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