Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 19
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ आपातरम्या परिणामरम्यां, सुनिर्मलांगी मलपात्रगात्रा। रुच्या बुधानां ललनाऽस्ति काऽपि, वैराग्यलक्ष्मी न विना जगत्याम् 12 वैराग्यमित्रं कृतिनां पवित्रं, लब्धं प्रसादान्नृपसुस्थितस्य / प्रदर्शयत्येव विवेकरत्नं, विधाय वाचाटखलाक्षिबन्धम् // 13 // नानाविधाध्यात्मिकभावरत्नप्रभाभरोद्भासितचित्तभित्तौ / परिस्फुरन्मूलगुणेन्दुकान्ताभिबद्धसत्कुट्टिमसन्निवेशे // 14 // विसृत्वरैरुत्तरसद्गुणौधैः; प्रपञ्चितानन्तवितानशोभे / स्वकर्मरन्ध्राख्यगवाक्षलम्बिमुक्तावचूलोपमधीगुणौघे // 15 // प्रधूपिते निर्मलवासनाभिः, सुसत्त्वकर्पूररजोऽभिरामे। .. विसृत्वरीभिः श्रुतधारणाभिः, कस्तूरिकाभिः सुरभीकृते च // 16 // छायाभरैर्ध्वस्तसमस्तकर्म-धर्मप्रचारे स्वविलाससिद्धैः। नीते सदा शीतलतां च शील-लीलाभिधैः सांक्रमिकाम्बुयन्त्रैः / / 17 / / वैराग्यसद्यन्यविकल्पतल्पे, स्थिता भृते संवरशुद्धिपुष्पैः / महानुभावाः सह धर्मपत्न्या, सुखं श्रयन्ते समताख्यया ये // 18 // तेषां मुनीनां खलु तात्त्विकीयं, गृहस्थताऽवस्थितिशर्मभूमिः / परे गृहस्थास्तु परिभ्रमन्तः, संसारकान्तारमृगस्वरूपाः (षड्भिः कुलकम्)। 19 // श्रद्धाधृतिक्षान्तिदयासुमेधा-मुख्याप्सरोभिर्विलसत्यजस्रम् / वैराग्यरूपे खलु नन्दने यः, शक्रोऽपि कस्तस्य मुनेः पुरस्तात्॥ 20 // रसान्तरस्येह कथा तथात्वं, करोति भावैरुपनीयमानैः। बाझैः स्वमाभ्यन्तरशुद्धरूप-मेकैव वैराग्यकथोपधत्ते // 21 // स्वतः सतामाचरगोचरत्वा-दस्यां खलानामरुचेर्न दोषः। . न कल्पवल्लिः करभानभीष्टे-त्युपत्यकीर्ति विबुधोपसेव्या // 22 // उपक्रमो धर्मकथाश्रयो न, त्याज्यः खलाप्रीतिभिया प्रबुद्धैः। नो चेन्मलोत्पत्तिभिया जनानां, वस्त्रोपभोगोऽपि कथं घटेत // 23 //

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