Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 19
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 16
________________ // 77 // हेतोरतः पर्वतकल्पवल्ली-विसृत्वरामोदविशङ्कितास्ते / आयान्ति चौरा गृहिधर्मदेशे-ऽप्यालस्यवस्त्रेण निबद्ध्य नासाम् / / 72 // तत्तागप्यद्रिसमृद्धिशर्म-चारित्रधर्मस्य मनःप्रसादम् / शत्रुप्रचाराप्रतिरोधदुःस्थं, दत्ते न पङ्कोपहतं यथाऽम्भः // 73 // ततः स्वशैलस्य समृद्धिशर्म, स भूमिशकोऽबहु मन्यमानः / उपद्रवात् स्वाश्रितमण्डलानां, बोधः प्रतीत्थं सचिवं ब्रवीति // 74 / / दुर्वादिपक्षा इव कूटलक्ष्या, मलीमसाः प्राञ्जलमाश्रितं नः / निवार्यमाणा अपि मोहसैन्याः, पुनः पुनर्लोकमुपद्रवन्ति // 5 // अस्मद्बलं तिष्ठति चित्तवृत्तौ, वैराग्यवल्लीं न विना प्रवृद्धाम् / छलान्विषस्ते च विनाशयन्ति, बीजाङ्कुरस्कन्धदशामपीमाम्।। 76 // निजाश्रितानामिति मानवाना-मुपद्रवोऽधस्तनमण्डलेषु / अयं प्रतापक्षतये भवेन्मे, खेरिवाम्भोधरसन्निरोधः विचार्य मे ब्रूहि तदार्य ! तेषा-मात्यन्तिकं विघ्नविनाशहेतुम् / भूयान्मनीषा तव भूरिचिन्ता-महार्णवोत्तारकरी तरीव // 78 // इतीरिते भूमिभुजा ब्रवीति, सद्बोधमन्त्री कलितोरुनीतिः। बलस्य कार्य नहि तेषु राजं-स्त्राणं कला येषु पलायनस्य // 79 // उपद्रवस्यास्य विनाशहेतुः, पूजाऽस्ति पूता परमेश्वरस्य / स्वसैन्यसंमर्दमृतेऽपि हन्त; हतो यया स्याद् द्विषतां प्रचारः // 80 // तेषां रिपूणां पदशृङ्खलेयं, स्वमण्डलक्षेमविधानदक्षा। क्रन्दन्ति बद्धा ह्यनया नितान्तं, भवन्ति न स्पन्दितुमप्यलं ते // 81 // उक्ता विशुद्धा त्रिविधा क्रमात् सा, प्रकृष्टमध्याधिकविघ्नहीं। व्यापारसारा निजकायवाणी-मनोविशुद्धैरुपचारभेदैः // 82 // समन्तभद्रा प्रथमाऽत्र पूजा, प्रोक्ता द्वितीया खलु सर्वभद्रा। मरोर्भवस्याध्वनि सर्वसिद्धि-फला तृतीयाऽमृतदीर्घिकाभा // 83 // मद्रा

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