Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 05
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 10
________________ // 1 // // 2 // // 3 // // 4 // // गुरुतत्त्वविनिश्चयः // प्रथमोल्लासः पणमिय पासजिणिदं, संखेसरसंठियं महाभागं / अत्तट्ठीण हिअट्ठा, गुरुतत्तविणिच्छयं वुच्छं गुरुआणाए मुक्खो, गुरुप्पसाया उ अट्ठसिद्धीओ। गुरुभत्तीए विज्जा-साफल्लं होइ णियमेणं सरणं भव्वजिआणं, संसाराडविमहाकडिल्लम्मि। मुत्तूण गुरुं अन्नो, णत्थि ण होही ण वि य हुत्था जह कारुणिओ विज्जो, देइ समाहि जणाण जरिआणं / तह भवजरगहिआणं, धम्मसमाहिं गुरू देइ जह दीवो अप्पाणं, परं च दीवेइ दित्तिगुणजोगा। तह रयणत्तयजोगा, गुरू वि मोहंधयारहरो जे किर पएसिपमुहा, पाविट्ठा दुधिट्ठनिल्लज्जा। गुरुहत्थालंबेणं, संपत्ता ते वि परमपयं उज्झियघरवासाण वि, जं किर कट्ठस्स णत्थि साफल्लं / तं गुरुभत्तीए च्चिय, कोडिन्नाईण व हविज्जा दुहगब्भि मोहगब्भे, वेरग्गे संठिया जणा बहवे। गुरुपरतंताण हवे, हंदि तय नाणगब्भं तु . अम्हारिसा वि मुक्खा, पंतीए पंडिआण.पविसंति / अण्णं गुरुभत्तीए, किं विलसिअमब्भुअं इत्तो? सक्का वि णेव सक्का, गुरुगुणगणकित्तणं करेउं जे। भत्तीइ पेलिआण वि, अण्णेसिं तत्थ का सत्ती ? इत्तो गुरुकुलवासो, पढमायारो णिदंसिओ समए / उवएसरहस्साइसु, एयं च विवेइअं बहुसो // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // // 11 //

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