Book Title: Shasan Chatustrinshika aur Madankirti Author(s): Darbarilal Kothiya Publisher: Z_Darbarilal_Kothiya_Abhinandan_Granth_012020.pdf View full book textPage 2
________________ रूपमें निवद्ध है । साथ ही उनके प्रभावोल्लेखपूर्वक दिगम्बरशासनका महत्त्व ख्यापित करते हुए प्रत्येक पद्यमें उसका जयघोष किया गया है। जैनतीर्थोके ऐतिहासिक परिचयमें जिन रचनाओं आदिसे विशेष मदद मिल सकती है उनमें यह रचना भी प्राचीनता आदिकी दृष्टिसे अपना विशिष्ट स्थान रखती है। विक्रम संवत् १३३४में रचे हुए चन्द्रप्रभसूरिके प्रभावकचरित्र, विक्रम संवत् १३६१ में निर्मित मेरुतुङ्गाचार्यके प्रबन्धचिन्तामणि, विक्रम संवत् १३८९में पूर्ण हुए जिनप्रभसूरिके विविधतीर्थकल्प और विक्रम संवत् १४०५ में निर्मित राजशेखरसूरिके प्रबन्धकोश (चतुविशतिप्रबन्ध) में भी जैनतीर्थोके इतिहासकी सामग्री पायी जाती है । मुनि मदनकी तिकी, जिन्हें 'महाप्रामाणिकचूडामणि'का विरुद प्राप्त था और जिसका उल्लेख राजशेखरसुरिने अपने उक्त प्रबन्धकोश (पृष्ठ ६४) में किया है और उनके सम्बन्धका एक स्वतन्त्र 'मदनकीर्तिप्रबन्ध' नामका प्रबन्ध भी लिखा है, यह कृति इन चारों रचनाओंसे प्राचीन (विक्रम संवत् १२८५ के लगभगकी रची) है । अतः यह रचना जैनतीर्थोके इतिहासके परिचयमें विशेष उल्लेखनीय है । इसमें कुल ३६ पद्य है, जो अनुष्टुप छन्दमें प्रायः ८४ श्लोक जितने हैं। इनमें नंबरहीन पहला पद्य अगले ३२ पद्योंके प्रथमाक्षरोंसे रचा गया है और जो अनष्टप-वत्तमें है । अन्तिम (३५वां) पद्य प्रशस्ति-पद्य है, जिसमें रचयिताने अपने नामोल्लेख के साथ अपनी कुछ आत्मचर्या दी है और जो मालिनी छन्दमें है। शेष ३४ पद्य ग्रन्थ-विषयसे सम्बद्ध है, जिनकी रचना शार्दूलविक्रीडित वृत्तमें हुई है। इन चौंतीस पद्योंमें दिगम्बर शासनके प्रभाव और विजयका प्रतिपादन होनेसे यह रचना 'शासनचतुस्त्रिशि (शति)का' अथवा शासनचौंतीसी' जैसे नामोंसे दि० जैनसाहित्यमें प्रसिद्ध है। विषय-परिचय इसमें विभिन्न तीर्थस्थानों और वहाँके दिगम्बर जिनबिम्बोंके अतिशयों, माहात्म्यों और प्रभावोंके प्रदर्शनद्वारा यह बतलाया गया है कि दिगम्बरशासन अपनी अहिंसा, अपरिग्रह (निर्ग्रन्थता), स्यावाद आदि विशेषताओंके कारण सब प्रकारसे जयकारकी क्षमता रखता है और उसके लोकमें बड़े प्रभाव तथा अतिशय रहे हैं । कैलासका ऋषभदेवका जिनबिम्ब, पोदनपुरके बाहुबलि, श्रीपुरके पार्श्वनाथ, हुलगिरि अथवा होलागिरिके शङ्खजिन, धाराके पार्श्वनाथ, बृहत्पुरके बृहद्देव, जैनपुर (जैनबिद्री) के दक्षिण-गोम्मटदेव, पूर्वदिशाके पार्श्वजिनेश्वर, विश्वसेनद्वारा समुद्रसे निकाले शान्तिजिन, उत्तरदिशाके जिनबिम्ब, सम्मेदशिखरके बीस तीर्थङ्कर, पुष्पपुरके श्री पुष्पदन्त, नागद्रहके नागहृदेश्वरजिन, सम्मेदशिखरकी अमृतवापिका, पश्चिमसमुद्रतटके श्रीचन्द्रप्रभजिन, छायापार्श्वप्रभु, श्रीआदिजिनेश्वर, पावापुरके श्रीवीरजिन, गिरनारके श्रीनेमिनाथ, चम्पापुरके श्रीवासुपूज्य, नर्मदाके जलसे अभिषिक्त श्रीशान्तिजिनेश्वर, आश्रम' या आशारम्यके श्रीमुनिसुव्रतजिन, विपुलगिरिका जिनबिम्ब, विन्ध्यागिरिके जिनचैत्यालय, मेदपाट (मेवाड़) देशस्थ नागफणी ग्रामके श्रीमल्लिजिनेश्वर और मालवादेशके मङ्गलपुरके श्री अभिनन्दनजिन इन २६के लोक-विश्रु त अतिशयोंका इसमें समुल्लेख हुआ है। इसके अलावा यह भी प्रतिपादन किया गया है कि स्मृतिपाठक, वेदान्ती, वैशेषिक, मायावी, योग, सांख्य, चार्वाक और बौद्ध इन दूसरे शासनोंद्वारा भी दिगम्बरशासन कई बातोंमें समाश्रित हुआ है। १. उदयकीर्तिमनिकृत अपभ्रंश निर्वाणभक्तिमें आश्रम और प्राकृत निर्वाणकाण्ड गाथा २० में आशारम्यनगर का उल्लेख है। -३४१ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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