Book Title: Shasan Chatustrinshika aur Madankirti
Author(s): Darbarilal Kothiya
Publisher: Z_Darbarilal_Kothiya_Abhinandan_Granth_012020.pdf
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निर्वाणकाण्डकार और अपभ्रंश निर्वाणभक्तिकारका भी यही कहना है(क) उज्जते णेमिजिणो''प्रा० नि० का० गा० १ ।
(ख) 'उज्जेति महागिरि सिद्धिपत्तु, सिरिनेमिनाहु जादवपवित् ।
इसके सिवाय इन दोनों ग्रन्थकारोंने यह भी लिखा है कि प्रद्युम्नकुमार, शम्भुकुमार, अनिरुद्धकुमार और सात सौ बहत्तर कोटि मुनियोंने भी इसी ऊर्जयन्तगिरि - गिरनारसे सिद्ध-पद प्राप्त किया है । यथा(क) मसामि पज्जुण्णो संबुकुमारो तहेव अणिरुद्धो ।
बाहत्तरकोडीओ उज्जंते सत्तसया सिद्धा ।। नि० का० ५ ।
(ख) अण्णे पुणु सामपजुण्णवेवि, अणिरुद्धसहिय हउं नवमि ते वि ।
अवरे पुणु सत्तसयाई तिथु, बाहत्तरिकोडिउ सिद्धपत्तु ॥ - अप० नि० भ० ।
यह ऊर्जयन्तगिरि पाँच पहाड़ोंमें विभक्त है । पहले पहाड़की एक गुफामें राजुलकी मूर्ति है । राजुलने इसी पर्वतपर दीक्षा ली थी और तप किया था । राजुल तीर्थंकर नेमिनाथकी पत्नी बननेवाली थीं, पर नेमिनाथ के एक निमित्तको लेकर दीक्षित होजाने पर उन्होने भी दीक्षा ले ली थी और विवाह नहीं कराया था। दूसरे पहाड़से अनिरुद्ध कुमार, तीसरेसे शम्भुकुमार, चौथेसे श्रीकृष्णजीके पुत्र प्रद्युम्नकुमार और पाँचवेंसे तीर्थंकर नेमिनाथने निर्वाण प्राप्त किया था । इस सिद्धतीर्थ की जैनसमाज में वही प्रतिष्ठा है जो सम्मेदशिखरकी है। यह सौराष्ट्र (गुजरात) में जूनागढ़ के निकट अवस्थित है । तलहटी में धर्मशालाएँ भी बनी हुई हैं । मदनकीर्ति पद्य २० के उल्लेखानुसार यहाँ श्रीनेमिनाथकी बड़ी मनोज्ञ और निराभरण मूर्ति रही, जो खास प्रभाव एवं अतिशयको लिये हुए थी। मालूम नहीं वह मूर्ति अब कहाँ गई, या खण्डित हो चुकी है, क्योंकि अब वहाँ चरणचिह्न ही पाये जाते हैं ।
६. चम्पापुर
बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्यका यह गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्षका स्थान है । अतएव यह सिद्धतीर्थ और अतिशय तीर्थ दोनों है । स्वामी पूज्यपादने लिखा है कि चम्पापुरमें वसुपूज्यसुत भगवान् वासुपूज्यने रागादि कर्मबन्धको नाशकर सिद्धि (मुक्ति) प्राप्त की है । यथा
चम्पापुरे च वसुपूज्यसुतः सुधीमान् ।
सिद्धि परामुपगतो गतरागबन्धः ॥ - सं०नि० भ० २२ ।
यही निर्वाणकाण्ड और अपभ्रंशनिर्वाणभक्ति में कहा है
(क) 'चंपाए वासुपुज्जजिणणाहो' – नि० का० १ ।
(ख) पुणु चंपनयरि जिणु वासुपुज्ज, णिव्वाणपत्तु छंडेवि रज्जु । - अ० नि० भ० ।
इस तरह चम्पापुरको जैनसाहित्य में एक पूज्य तीर्थ माना गया है । इसके सिवाय, जैन ग्रन्थों में चम्पापुरकी प्राचीन दस राजधानियों में भी गिनती की गई है और उसे एक समृद्ध नगर बतलाया गया है' ।
यह चम्पापुर वर्तमान में एक गाँव के रूपमें मौजूद है और भागलपुर से ६ मीलकी दूरीपर है । मदनकीर्ति उल्लेखानुसार यहाँ १२वें तीर्थंकर वासुपूज्यकी अतिशयपूर्ण मूर्ति रही है, जिसकी देव-मनुष्यादि पुष्पनिचयसे बड़ी भक्ति पूजा करते थे । प्रतीत होता है कि चम्पापुरके पास जो मन्दरगिरि है उससे सटा हुआ
१. डा० जगदीशचन्द्रकृत "जैनग्रन्थों में भौगोलिक सामग्री और भारतवर्ष में जैनधर्मका प्रचार' शीर्षक लेख, प्रेमी - अभिनन्दन ग्रन्थ पृष्ठ २५४ ।
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