Book Title: Shantipath Pradarshan
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat

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Page 17
________________ (xiv) १०. डॉ० कस्तूरून्द जैन एम. ए रिसर्च स्कॉलर जयपुर - ४. ४. ६१ शान्तिपथ-प्रदर्शन पुस्तक मिली, हार्दिक धन्यवाद । पुस्तक बहुत सुन्दर है एवं आध्यात्मिक रससे ओतप्रोत है । ब्रo जी ने अपने हृदय के उद्गारों को पाठकों के समक्ष उपस्थित किया है, जिनसे आत्मिक शान्ति का अनुभव होता है । सरल एवं सरस भाषा से पुस्तक की उपयोगिता में और भी वृद्धि हुई है। पानीपत मिशन शाखा ने इसे प्रकाशित करके प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय कार्य किया है। ११. श्रीमान दानवीर जैन रत्न सेठ हीरालाल जैन इन्दौर मैंने श्री शान्तिपथ-प्रदर्शन ग्रन्थ का आद्योपान्त अध्ययन किया है। यह ग्रन्थ वास्तव में यथा-नाम तथा गुण है । भाषा सरल मधुर एवं आकर्षक है । अशान्त से अशान्त मानव भी कहीं से कोई भी प्रकरण पढ़ना प्रारम्भ करते ही शान्ति का अनुभव करने लगता है । गहन से गहन बात को सरलता से समझाया गया है। वर्तमान के शिक्षित ग्रेजुएटों को स्वाध्याय की रुचि इससे होती है। जैनेतर समाज के लिए भी इसमें अध्ययन एवं मनन के लिए उत्कृष्ट सामग्री है। यह ग्रन्थ साम्प्रदायिकता से परे मात्र धर्म को ही सम्यक् रूप से निरूपण करनेवाला है, जो कि आज के समय की परमावश्यकता है । लेखक की विशाल दृष्टि, गहन अध्ययन एवं अनुभव का इसमें पूरा-पूरा आभास मिलता है । सांसारिक दुःखों से त्रस्त मानव को यह ग्रन्थ श्रेष्ठ पथप्रदर्शक एवं परम शान्ति का दाता है। वास्तव में सन्तों की वाणी स्व-परोपकारी होती है जो कि मानव को शान्ति की ओर आकृष्ट कर लेती है । इसीलिए शान्ति पाने के इच्छुक सज्जन इस ग्रन्थ का मनन कर लाभ प्राप्त करते रहें, यही कामना है। १२. श्रीमान टीकमचन्द जैन मालिक फर्म श्री घीसालाल जतनलाल बैंकर्स नसीराबाद - २१. २. ६३ भौतिक बाह्याडंबरों की चकाचौंध और इस युग - विशेष की अर्थोपार्जन की विभीषिका ने जब इस नश्वर संसार के मानव प्राणी की स्व पर की आध्यात्मिक चिन्तन शक्ति पर वज्रपात कर चैतन्यस्वरूप ज्ञाता दृष्टा, चिदानन्द चिद्स्वरूप आनन्दधन आत्मा को अज्ञान आवरण से आच्छादित कर दिया, तब ऐसे दुर्दम समय में शान्तिपथ के पथिक बनने में निराशा झलकती थी । परन्तु आशा की अलौकिक एवं विमल किरण उदित हुई कि हम सब मुमुक्षुओं को सौभाग्य से यह ग्रन्थराज जीवन के उपहार स्वरूप उपलब्ध हुआ । यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि 'शान्तिपथ-प्रदर्शन' ग्रन्थराज संजीवनी ने हम अल्पज्ञों को पुनर्जीवित ही नहीं किया है वरन् अमृतपान कराया है। इसके लिए हम सब शान्ति के उपासक, वन्दनीय पूज्य श्री १०५ क्षु० जिनेन्द्र कुमार वर्णी जी के अत्यधिक आभारी हैं कि जिनकी कुशाग्र एवं विमल बुद्धि के फलस्वरूप, तात्विक विवेचना इतनी वैज्ञानिक सरल भाषा में अनुपम उदाहरणों के साथ हो सकी है कि पाठकों के लिए हृदयस्पर्शी होकर नित्य स्वाध्याय की वस्तु हो गई है। इसी कारण यह मूल में भूल की वास्तविकता को बतलानेवाला यथावत् ग्रन्थ किसी एक ही समुदाय विशेष का न रहकर जाति-पाँति और वर्ण-भेद की संकीर्णता को छोड़कर इस युग-विशेष का जन-मानस ग्रन्थ बन गया है जो इस जैन समाज का गौरव है । अन्त में यह अनुमोदन करता हुआ कि— "परम शान्ति दीजे हम सबको पढ़ें जिन्हें पुनि चार संघ को " १३. उगमराज मोहनोत, मुंसिफ मैजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी नसीराबाद (राज०)— शान्तिपथ-प्रदर्शन पढ़कर मेरी आत्मा को अत्यन्त शान्ति प्राप्त हुई। इसमें कही हुई बातें आत्मा ही गहराई से निकली हुई अनुभव की बातें हैं । जो भाव व्यक्त किंवा अव्यक्त रूप से मेरे अन्तरंग में जोश मार रहे थे, लेकिन शास्त्र- ज्ञान से अपरिचित होने के करण जिन्हें प्रगट करने का साहस नहीं होता था, उन्हें डंके की चोट इस पुस्तक में देखकर आत्मा को बहुत सन्तोष हुआ। इसके लिए मैं लेखक का बहुत आभार मानता हुँ । इसके पढ़ने के बाद समयसार, प्रवचनसार, नियमसार इत्यादि अमूल्य ग्रन्थ रत्न आसानी से समझ में आ जाते हैं। मुमुक्षु बन्धुओं के लिए यह ग्रन्थ अत्यन्त उपकारी सिद्ध होगा. इसमें मझे सन्देह नहीं मालूम पड़ता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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