Book Title: Shantipath Pradarshan
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat

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Page 20
________________ प्रकाशकीय वक्तव्य (नवम् संस्करण) अति हर्ष का विषय है कि “शान्ति पथ प्रदर्शन" की लोकप्रियता के फलस्वरूप इस ग्रन्थ का नवम् संस्करण प्रकाशित हो रहा है, इस ग्रन्थ का अष्टम् संस्करण सन् १९९८ में प्रकाशित हुआ था। उस समय भी अर्थ की व्यवस्था करके ३००० प्रतियाँ प्रकाशित कराई गयी थी, किन्तु दो वर्ष के अल्प समय में ही यह संस्करण समाप्त हो गया । श्री जिनेन्द्र वर्णी ग्रन्थमाला के प्रबन्धक श्री सुरेश कुमार जैन, वर्णी जी के परम शिष्य कर्मठ कार्यकर्ता ब्र० अरहंत जैन एवं विदूषी बा० ब० डा० मनोरमा जैन से विचार विमर्श के उपरान्त ही सभी प्रकार के प्रकाशन कार्य सम्पन्न किये जाते हैं । ग्रन्थमाला के कार्यों में गाजियाबाद निवासी श्री सूरजमल जैन एवं बा० ब्र० डॉ० कु० निर्मला जैन, वाराणसी का भी सहयोग प्राप्त होता रहता है । श्रुतज्ञान के पारगामी श्रद्धेय गुरुवर का साहित्य उनकी गहनतम् अनुभूतियों को मुखरित करता है। जैन तथा जैनेतर वाङ्मय के सूक्ष्म रहस्यों को जानने के लिये, उनका साहित्य कुन्जी का कार्य करता है, जिसके द्वारा स्वाध्यायशील व्यक्ति किसी भी ग्रन्थि को आसानी से खोल सकता है । समस्त स्वाध्याय प्रेमियों तथा मुमुक्षु जनों के प्रति मेरा विशेष आग्रह है, कि वे इसके अध्ययन से वंचित न रहें । २३ मई १९८१ को परम श्रद्धय गुरुदेव श्री जिनेन्द्र वर्णी जी के सानिध्य में ही स्थापित 'श्री जिनेन्द्र वर्णी ग्रन्थमाला' नामक यह संस्था उनके महत्वपूर्ण ग्रन्थों को प्रकाशित कराने में सक्षम हुई है। इस सफलता का समस्त श्रेय, श्रद्धेय गुरुदेव को ही है, जिनके शुभाशीर्वाद से हम उनके अमुल्य ग्रन्थों को प्रकाशित कराने में सफल हो सके हैं। अब तक इस ग्रन्थमाला के द्वारा, अनेक संस्करणों में ये साहित्य, १ शान्तिपथ प्रदर्शन, २ नय दर्पण, ३ वर्णी दर्शन, ४ कर्म रहस्य, ५ कर्म सिद्धान्त, ६ पदार्थ विज्ञान, ७ कुन्दकुन्द दर्शन, ८ सत्य दर्शन, ९ अध्यात्म लेखमाला, १० प्रभुवाणी, ११ जैन दर्शन में कर्म सिद्धान्त एक अध्ययन, प्रकाशित हो चुका है। प्रकाशन में प्रेस का सारा कार्य भाई अरिहंत जी की देखरेख में होता है, ग्रन्थमाला आप की बहुत आभारी है। प्रस्तुत संस्करण में निम्न महानुभावों ने आर्थिक सहयोग देकर अपने धन का सदुपयोग किया है । ग्रन्थमाला सभी का हार्दिक धन्यवाद व्यक्त करती है। जिनवाणी के प्रकाशनार्थ की गई उनकी यह निःस्वार्थ सेवा उनके अध्यात्म पथ को अवश्य ही प्रशस्त करेगी । १. बा० ब्र० डॉ० कुमारी मनोरमा जैन, रोहतक २. श्री अनिल कुमार जैन सुपुत्र श्री गोविन्द राम जैन, रोहतक ३. श्री सूरजमल जैन सुपुत्र स्व० श्री चतरसेन जैन, गाजियाबाद ४. श्री दिगम्बर जैन समाज, विकासनगर, देहरादून ५. श्रीमती सरोज जैन धर्मपत्नी स्व० रामगोपाल जैन (श्रीमती दर्शन देवी व श्री फकीर चन्द जैन की स्मृति में) ६. श्रीमती राजबाला जैन, पानीपत Jain Education International For Private & Personal Use Only ११०००/ ५१००/ ५१००/ ५१००/ २१००/ ५०१/ श्री जिनेन्द्र वर्णी ग्रन्थमाला पानीपत www.jainelibrary.org

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