Book Title: Shantinath Puran
Author(s): Sakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
Publisher: Vitrag Vani Trust

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Page 21
________________ . . FFFF हों तथा जिनमें शील, दान, पूजा, आदि का वर्णन न हो, उसको सज्जन लोग 'मिथ्या कथायें' कहते हैं; क्योंकि ऐसी कथायें सिद्धान्त के विरुद्ध ही होती हैं । ऐसी-ऐसी सब तरह की कु-कथायें बद्धिमानों को छोड़ देनी चाहिए तथा स्वर्ग-मोक्ष के सुख देनेवाली धर्म-कथा भक्ति पूर्वक सुननी चाहिए । विद्वान लोगों को जन्म-मरण तथा बुढ़ापा की पीड़ा को नष्ट करने के लिए कानों की अन्जलि-रूपी पात्रों के द्वारा सदा श्रेष्ठ-कथा-रूपी अमृत पीते रहना चाहिए । इस संसार में ऐसे अनेक वक्ता मुनीश्वर विद्यमान हैं, जो उत्तम गुणों से सुशोभित हैं, धर्म-कथा तथा सर्वोत्तम मोक्षमार्ग का निरूपण करनेवाले हैं, पुण्यवान् हैं, रत्नत्रय से परिपूर्ण हैं, जिनके संवेग आदि गुण बढ़े हुए हैं, अनेक विद्वान लोग जिनकी स्तुति करते हैं तथा समस्त संसार जिनको नमस्कार करता है तथा तीनों लोक जिनकी पूजा करते हैं, ऐसे वक्ता मुनिराज मेरे कल्याणकर्ता हों । इस संसार में अनेक श्रोता भी विद्यमान हैं-जो गुणी हैं, सम्यग्ज्ञानी हैं, मोहरहित हैं, संवेग (धर्मानुराग) आदि गुणों से सुशोभित हैं; राग-द्वेष आदि दोषों के समूह से रहित हैं, सार-असार आदि के विचार में चतुर हैं; वक्ताओं की कही हुई कथाओं को सुनना चाहते हैं, गुणी हैं, विवेकी हैं और अत्यन्त निर्मल हैं--ऐसे श्रोता इस संसार में धन्य कहलाते हैं । जो श्री शान्तिनाथ के जन्म को सूचित करनेवाली है, संवेग तथा धर्म को बढ़ानेवाली है, सारभूत है, श्रेष्ठ गुणों से सुशोभित है, बुद्धिमान लोग भी जिसको मानते हैं, जिससे हिताहित का ज्ञान होता है, जो शील से शोभायमान है, गुरु की भक्ति के भार से रची हुई है, जीवों के पुण्य को बढ़ानेवाली है तथा श्री अरहन्तदेव के मुख से उत्पन्न हुई है, ऐसी श्रेष्ठ कथा को मैं मोक्ष प्राप्त करने के लिए कहूँगा । देव, विद्याधर आदि सभी जिनकी सेवा करते हैं, जो समस्त तत्वों को प्रगट करने के लिए दीपक के समान हैं, सब दोषों से रहित हैं, धर्म तीर्थ के स्वामी, समस्त गुणों के सागर तथा सब लोग जिनकी पूजा करते हैं, ऐसे श्री शान्तिनाथ की मैं समस्त निर्मल कीर्ति कह कर स्तुति करता हूँ ॥१०॥ दूसरा अधिकार 'तीनों लोक जिन्हें नमस्कार करता है, ऐसे श्री शान्तिनाथ भगवान के चरणकमलों को नमस्कार कर मैं केवल कर्मों का नाश करने के लिए उन श्री शान्तिनाथ भगवान की कथा कहता हूँ। इस मध्यलोक 444444

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