Book Title: Shantinath Charitram
Author(s): Hargovinddas
Publisher: Jain Vividh Sahitya Shastramala
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शान्तिनाथचरित्रेयथा श्रुतस्येह निपीततत्कथा___ स्तथाऽऽद्रियन्ते न बुधाः सुधामपि । सुधाभुजां जन्म न तन्मनःप्रियं
भवेद् भवे यत्र न तत्कथाप्रथा ॥३॥ यदीयपादाम्बुजभक्तिनिर्भरात्
प्रभावतस्तुल्यतया प्रभावतः । नलः सितच्छत्रितकीर्तिमण्डल:
क्षमापतिः प्राप यशःप्रशस्यताम् ॥४॥ द्विधापि धर्मानुगतिर्महीपति
दृढविधेः शैशव एष सेवधिः । क्रमेण चक्री विजये दिशां जिनः __ स राशिरासीन्महसां महोज्ज्वलः ॥५॥ रसैः कथा यस्य सुधावधीरिणी . कृता सकृत् कृन्तति दुष्कृतं नृणाम् । १ सूर्यस्य । २ "धर्मो यमोपमापुण्यस्वभावाचारधन्वसु ।
_ सत्सङ्गेऽहत्यहिंसादौ न्यायोपनिषदोरपि ॥" ३ अवधिः अवधिज्ञानम् । ४ महै। उत्सवैः, उज्ज्वला, "उज्वलस्तु विकासिनि शृङ्गारे विशदे दीप्ते" हे। .

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