Book Title: Savruttikam Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Unkonwn
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 9
________________ पोडशमध्ययनम् सू१३गा XANASARANASASASEARA मूलम्-नो सदरूवरसगंधफासाणुवाई हवइ से निग्गंथे, तं कहमितिचे ? आयरिआह-निग्गंथस्स|| खलु सदरूवरसगंधफासाणुवाइस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा वितिगिच्छा वा समुप्पजिज्जा, भेअं वा लभेजा, उम्मादं वा पाउणिज्जा, दीहकालिअं वा रोगायक हविजा, केवपिण्णताओ वा धम्माओ भंसिज्जा, तम्हा खलु नो निग्गंथे सदरूवरसगंधफासाणुवाई हवइ से निग्गंथे, दसमे बंभचेरसमाहिट्टाणे हवइ ॥ १३ ॥ व्याख्या-नो नैव शब्दरूपरसगन्धस्पर्शानभिष्वङ्गहेतूननुपतति अनुयातीत्येवंशील: शब्दरूपरसगन्धस्पर्शानु-| पाती भवति यः स निर्ग्रन्थः, तत्कथमितिचेदित्यादि प्राग्वत् , दशमं ब्रह्मचर्यसमाधिस्थानं भवतीति निगमनमिति सूत्रार्थः ॥ १० ॥१३॥ मूलम्-भवंति इत्थसिलोगा तंजहा__ व्याख्या-भवन्ति विद्यन्ते अत्र पूर्वोक्तार्थे श्लोकाः पद्यरूपास्तद्यथामूलम्--जं विवित्तमणाइण्णं, रहिअं थीजणेण य । बंभचेरस्स रक्खट्टा, आलयं तु निसेवए ॥१॥ व्याख्या-'जंति' प्राकृतत्वात् यो विविक्तो रहस्यभूतस्तत्रैव वास्तव्यख्याद्यभावादनाकीर्णस्तत्तत्प्रयोजनागतस्त्रया १०॥१२ "मोगा तंजहाकाः पद्य

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