Book Title: Savruttikam Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Unkonwn
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 14
________________ उत्तराध्ययन ॥३२५॥ RECCANA धवस्तेषु रतो न त्वेकाकित्वे धर्मारामरतो दान्त उपशान्तः, ब्रह्मचर्ये समाहितः समाधानवान् ब्रह्मचर्यसमाहित इति | षोडशमसूत्रार्थः ॥ १५॥ अथ ब्रह्मचर्यमाहात्म्यमाह ध्ययनम् मलम्-देवदाणव गंधवा, जक्खरक्खसकिन्नरा । बंभयारिं नमसंति, दुकरं जे करंति ते ॥ १६॥ । व्याख्या-देवदानवगन्धर्वा यक्षराक्षसकिन्नराः, सकलदेवजात्युपलक्षणमेतत्, एते सर्वेपिब्रह्मचारिणं मुनिं नमस्यन्ति दुष्कर गा१६-१७ दुरनुचरं प्रक्रमाद्ब्रह्मचर्य 'जेकरंति तेत्ति' सूत्रत्वाद्यः करोति पालयति तमिति सूत्रार्थः ॥१६॥अध्ययनार्थोपसंहारमाह मूलम्-एस धम्मे धुवे निइतिए, सासए जिणदेसिए। सिद्धा सिझंति चाणेणं, सिज्झिस्संति तहावरेत्ति बेमि ॥ १७ ॥ व्याख्या-एष पूर्वोक्तो धर्मो ब्रह्मचर्यरूपोध्रुवः स्थिरः परवादिभिरप्रकम्प्यतया प्रमाणप्रतिष्ठित इत्यर्थः, नित्यस्त्रिकालभावित्वात् , शाश्वतोऽनवरतभवनात् , एकार्थिकानि वा एतानि, जिनैदेशितः प्रोक्तो जिनदेशितः, अस्प त्रैकालिकं फलमाह-सिद्धाः पूर्वमनन्ताः, सिध्यन्ति विदेहेषु अत्र वा तत्कालापेक्षया, चः समुच्चये, अनेन ब्रह्मचर्यरूपेण धर्मेण ॥३२५।। सेत्स्यन्ति तथाऽपरे अनन्तायामनागताद्धायामिति सूत्रार्थः, इति ब्रवीमीति प्राग्वत् ॥ १७ ॥ SROGETROHIDIEOHTOTHOEMOIROHTOTTAmaremOTOROMOTOROHOROTEIGORORSCOPoHOTORRHOIROMOEOGRETOGEcole इति श्रीतपागच्छीयमहोपाध्यायश्रीविमलहर्षगणिमहोपाध्यायश्रीमुनिविमलगणिशिष्योपाध्याय श्रीभावविजयगणिसमर्थितायां श्रीउत्तराध्ययनसूत्रवृत्तौ षोडशमध्ययनं सम्पूर्णम् ॥ १६ ॥ CHERSNEHOOTOTROHOROMomomasaaDEMORRORamazMOJIRIBEORTOISON 501501200EORGoria EELDEO

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