Book Title: Savruttikam Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Unkonwn
Publisher: ZZZ Unknown
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षोडशमध्ययनम्
गा ९-१२
उत्तराध्ययन दस्तावे, यात्रार्थ संयमनिर्वाहार्थ न तु रूपाद्यर्थ, प्रणिधानवान् मनःखास्थ्योपेतो न तु रागद्वेषवशगो भुजीतेति योगः। ॥३२४॥
तु शब्दस्योत्तरस्येह सम्बन्धान्न तु न पुनरतिमा मात्रातिक्रान्तं भुञ्जीत ब्रह्मचर्यरतः सदा, कदाचित्तु कारणादतिमात्राहारोप्यदुष्टः ॥८॥ मूलम्-विभूसं परिवजिज्जा, सरीरपरिमंडणं । बंभचेररओ भिक्खू , सिंगारत्थं न धारए ॥ ९॥ | व्याख्या-विभूषामुपकरणगतां परिवर्जयेत् , शरीरपरिमण्डनं च केशश्मश्रुसमारचनादिकं, ब्रह्मचर्यरतो भिक्षुः शृङ्गारार्थ न धारयन्न कुर्यात् ॥९॥ मूलम्- सद्दे रूवे अ गंधे अ, रसे फासे तहेवय । पंचविहे कामगुणे, निच्चसो परिवजए ॥ १० ॥ ___ व्याख्या--व्यक्तं, नवरं-कामस्य इच्छामदनरूपस्य गुणा उपकारकाः कामगुणास्तानिति सूत्रदशकाथैः ॥ १० ॥ अथ यत्पूर्व प्रत्येकमुक्तं शङ्का वा स्यादित्यादि तदेव दृष्टान्तेन स्पष्टयितुमाहमूलम्--आलओ थीजणाइण्णो,थीकहा य मणोरमा। संथवो चेव नारीणं, तासिं इंदिअदरिसणं ॥११॥|
व्याख्या-सुगम, नवरं-'संथयोत्ति' संस्तव एकासनभोगादिना परिचयः ॥ ११ ॥ मूलम्-कुइअं रुइअंगी, सहसा भुत्तासिआणि। पणिभत्तपाणं च, अइमायं पाणभोअणं ॥१२॥
ARARACHARISM
MASARAPRISLOSTAA
॥ ३२४॥
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