Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 33 Pindniryukti Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

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Page 11
________________ [पिण्डनियुक्ति- मूलं एवं वृत्ति:] इस प्रकाशन की विकास-गाथा यह प्रत सबसे पहले “श्री पिण्डनियुक्तिः” नामसे सन १९१८ (विक्रम संवत १९७४) में देवचन्द्र लालभाइ पुस्तकोद्धार संस्था द्वारा प्रकाशित हुई , इस के संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) महाराज साहेब | हमने जब "आगमसुत्ताणि" (सटीक) नामसे ४५ आगम-सटीकं का प्रकाशन करवाया तब हमारे संपादन कार्यमे इसी प्रत का सहारा लेकर हमने भी “पिण्डनियुक्ति-सटीक" का पुन: संपादन एवं प्रकाशन किया है | जो "आगमसुत्ताणि" (सटीक) के २६ वे भागमे मुद्रित हुआ है, और इन्टरनेट पर भी "आगमसुत्ताणि" (सटीक) ४१/२ के रुपमे है। जीसे हमारे द्वारा प्रकाशित 'डीवीडी' में भी स्थान दिया है। हमारा ये प्रयास क्यों? आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले,४५-आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है, किन्तु लोगो की पूज्यश्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसमे बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी ,ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर मूलसूत्र-नियुक्ति-भाष्य आदि के नंबर लिख दिए , ताँकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा सूत्र , नियुक्ति, भाष्य आदि चल रहे है उसका सरलता से ज्ञान हो शके | बायीं तरफ आगम का क्रम और इसी प्रत का नियुक्ति/भाष्य/प्रक्षेप का सूत्रक्रम दिया है, उसके साथ वहाँ 'दीप अनुक्रम ' भी दिया है, जिससे हमारे प्राकृत, संस्कृत, हिंदी गुजराती, इंग्लिश आदि सभी आगम प्रकाशनोमें प्रवेश कर शके । हमारे अनुक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक सामान और क्रमशः आगे बढते हए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, मगर प्रत में गाथा आदि के नंबर अलग-अलग होने से हमने उसे अलग-अलग दिए है और उसके लिए ||-|| ऐसी दो लाइन खींची या 'गाथा' आदि शब्द लिख दिया है | अनेक स्थानोमे पृष्ठ के नीचे विशिष्ठ फूटनोट्स भी दी है | शासनप्रभावक पूज्य आचार्यश्री हर्षसागरसूरिजी म.सा. की प्रेरणासे और श्री वर्धमान जैन आगममंदिर, पालिताणा की संपूर्ण द्रव्य सहाय से ये 'सवृत्तिक-आगम-सुत्ताणि' भाग-३३ का मुद्रण हुआ है, हम उन के प्रति हमारा आभार व्यक्त करते है | ......मुनि दीपरत्नसागर. ~11

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