Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 15 Rajprashniya Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
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आगम (१३)
[भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र-२ (मूलं+वृत्तिः )
-------------- मूलं [३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१३], उपांगसूत्र- [२] “राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
अशोकक्ष
वर्णनं
प्रत
०३
श्रीराजमना सकलजगदसाधारणं रूपं यस्य स प्रतिरूपः, 'से गं असोगवरपायवे' इत्यादि 'जाव नंदिरुक्वहिं' इत्यत्र यावच्छब्दकरणात, 'लजमलयगिरी- पहिं छत्तावहिं सिरीसेहिं सत्तवण्णेहिं लोद्धेहिं दधिवन्नेहि चंदणेहिं अज्जुणेहिं नीवहिं कर्यवेहि फणसेहिं दाडिमेहि सालेहं| या वृत्तिः । तभालेहिं पियालहिं पियंगहि रायरुकवेहिं नंदीरकखेहि इति परिग्रहः, एते च लवकच्छत्रोपगशिरीषसप्तपर्णदधिपणेलुब्धकधव॥५॥ चन्दनार्जुननीपकदम्बफनसदाडिमतालतमालप्रियालप्रियङ्गराजवृक्षनन्दितृक्षाः प्रायः सुप्रसिद्धाः, 'तेणं तिलगा जाव नंदिरुक्खा कुस
विकुसे त्यादि ते तिलका यावत्रंदिवृक्षाः कुशविकुशविशुद्धक्षमूलाः, अत्र व्याख्या पूर्ववत्, 'मूलबन्तः मूलानि प्रभूतानि दूरावगाढानि
च सन्त्येषामिति मूलचन्तः, कन्द एपामस्तीति कन्दवन्तः, यावच्छब्दकरणात् सन्धिमन्तो तयामन्तो सालमन्तो पवालमन्तो पत्तमंतो all पुष्फर्मतो फलमंतो वीयमंतो अणुपुचिमुजायरुइलबट्टभावपरिणया एगखंधा अणेगसाहप्पसाहविडिमा अणेगनरवाममुष्पसारियअगिज्झ-6
घणविपुलचट्टखंधा अच्छिदपत्ता अविरलपत्ता अबाईपचा अणईणपत्ता णिव्वुयजरढपंडुपत्ता नबहरियभिसंतपत्तभारंधयारगंभीरदरिसणिज्जा उवनिग्गयनवतरुणपत्तपल्लवा कोमलउज्जलचलंतकिसलयसकमालपवालसोभियवरंकरग्गसिहरा निवं फसमिया निधन मउलिया निचं लवइया निच्चं थवइया निच्चं गुलइया निचं गोच्छिया निच्चं जमलिया निचं जुयलिया णि णमिया - निचं पणमिया निचं कुसुमियमउलियलवइयथवइयगुलइयगुच्छियजमलियजुयालयविणमियपणमियसुविभत्तपिंडिमंजरिवर्डिसयधरा सुकवरहिणमयणसल्लागाकोइलकोरुगकभिंगारककोंडलकजीवंजीवकनंदीमुखकविलपिंगलक्खगकारंडवचकवाककलहंससारसअणेगसउणगणमिहुणविरइयसोबइयमहुरसरणाइया सुरम्मा सुपिडियदरियभमरमहुयरिपहकरपरिल्लवमत्तछप्षयकुसुमासवलो| लमहुरगुमगुमंतगुर्जुनदेसभागा अम्भिरपुष्फफला बाहिरपत्तोच्छण्णा पत्तेहि य पुप्फेहि य उच्छन्नपलिच्छिन्ना निरोगका सार
G
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अशोकवृक्षस्य वर्णनं
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