Book Title: Sarasvat Vyakaranam
Author(s): Vasudev Sharma
Publisher: Pandurang Javaji
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आभ्यन्तर - प्रयत्नाः
संज्ञाः
बाह्यप्रयत्नाः व्यजनानि खराव
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सारस्वतव्याकरणम् ।
आभ्यन्तरबाह्यप्रयत्तज्ञानार्थकं कोष्टकम् |
स्पृष्टाः
स्पर्शाः
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अ.प्रा.म. प्रा. अल्प. प्रा म.प्र.
विवार
संवार संवार
अन्तःस्थाः ईषत्स्पृष्टाः
य
ल
अल्प. संवार
श्वास
नाद नाद नाद अघोष घोष घोष घोष
श
ऊष्माणः ईषद्विवृंताः
सह
म. ЯT.
विवार सं.
श्वास ना.
घोष घो.
[ वृत्ति: १
विवृताः संवृतः
स्वरा उदात्तानुदात्तस्वरिताः
अ इ ए
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औ अल्पप्राण
संवार
हखप्रयोगे 4
अल्प. संवार
नाद नाद घोष घोष
वर्णग्रहणे सवर्णग्रहणम् । कारग्रहणे केवलग्रहणम् । तपरकारणं तावन्मात्रार्थम् ॥ ॥ इति संज्ञाप्रकरणम् ॥ १ ॥
खरसंधिः २
अथाधुना खरसंधिरभिधीयते ॥ दधि आनय इति स्थिते । ( वर्णग्रहणे सवर्णग्रहणं कारग्रहणे केवलग्रहणं तपरग्रहणे तावन्मात्र - ग्रहणमिति शिष्टसंकेतः । 'तेस्मिन्निति निर्दिष्टे पूर्वस्य' । सप्तमी निर्देशेन विधीयमानं कार्यं वर्णान्तरेणाव्यवहितस्य पूर्वस्य बोध्यम् । अतो वृत्तौ परे इति व्याचष्टे । एवमन्यत्रापि ज्ञेयम् ) ॥ ३३ इ यं स्वरे १ ॥ इवर्णो यत्वमापद्यते खरे परे । दध् य् आनय इति तावद्भवति
१ धनुराकारान्तस्थो विषयः परिभाषायामपेक्षितोऽप्यत्र प्राकरणिकत्वानिवे शितः । २ सवृत्तिकं पाणिनीयं सूत्रमिदम् ।

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